Monday, 14 September 2015

*चैरिटी-शो*

*चैरिटी-शो*
यह कहानी मेरे बाल उपन्यास
बहादुर बेटी
से ली गई है।
...आनन्द विश्वास
चैरिटी-शो को लेकर बच्चों का उत्साह तो देखते ही बनता था। सभी बाल-मित्र अपने-अपने डान्स, फोक-डान्स, नाटक, कब्बाली, कवि-सम्मेलन, लोक-नृत्य और नृत्य-नाटिका, आदि के रिहर्सल को डायरेक्टर विक्रम शिकारी और कोरिओग्राफर जफ़र भाई के मार्ग-दर्शन में बड़ी ही गम्भीरता के साथ कर रहे थे।
चैरिटी-शो के ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम शिकारी ने जब बच्चों को बताया कि चैरिटी-शो के सभी टिकट बिक चुके हैं और शो हाउस-फुल हो चुका है। अब तो टिकटों की मारा-मारी चल रही है। बड़े-बड़े मिल-ओनर्स और उद्योगपतियों के लगातार फोन पर फोन आ रहे हैं और वे अपनी संस्था को बहुत बड़ी धन-राशि भी डोनेट करना चाहते हैं। उन्हें हमारा यह परोपकारी प्रयास बहुत ही पसन्द आया है। यह सुनकर तो सभी बाल-मित्रों और बाल-कलाकारों के उत्साह और उमंग का ठिकाना ही न रहा। 
रॉनली, आरती, मानसी, शाल्विया और घोष बाबू तो शो की सफलता को लेकर पहले से ही आश्वस्थ्य थे और अब तो वे दूसरा शो भी शीघ्र से शीघ्र ही आयोजित करने का मन बना चुके थे। साथ ही तीन करोड़ रुपये के पुरस्कार की राशि और पीएम की मुलाकात और उनके द्वारा दिए गए आश्वासनों ने बच्चों के हौसले, उत्साह और उमंग को और भी अधिक बढ़ा दिया था।
और शनैः शनैः ही सही शनिवार का दिन भी आ पहुँचा। आज गांधीनगर का महात्मा गांधी ऑडीटोरियम, *बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में होने वाले चैरिटी-शो के बैनरों से अटा पड़ा था। दर्शक-दीर्घा ओवर क्राउडेड थीं। स्टेज और आयोजकों को प्रतीक्षा थी तो बस एक ही थी और वह थी, अतिथि विशेष एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव के आगमन की।
बाहर की शान्त हवा में अचानक होने वाली हलचल ने स्टेज और चैरिटी-शो के बाल-कलाकारों को बता दिया कि अब तुम्हारी प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त हो चुकी है। उठो और जगा दो अपने सुसुप्त सप्त-स्वरों की सतरंगी आभा को, अपनी वीणा के सोए हुए तारों की झंकार को, घुँघरू और पायल की छम-छम को और गोरबन्दों की नखराळी आवाज को। ये अपार जन समुदाय आज देखना चाहता है तुम्हारी सुसुप्त शक्तियों को जाग्रत स्वरूप।
आरती, रॉनली और घोष बाबू ने अतिथि विशेष एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव का स्वागत पुष्प-पुंज और माल्यार्पण करके किया। तालियों की गड़गड़ाहट के जोरदार शोर से पूरा हॉल ही गूँज उठा था। फोटो और कैमरों की फ्लैश-लाइटस् इधर-उधर सारे हॉल में काफी देर तक चमकतीं रहीं।
और कुछ ही समय में आरती, रॉनली और घोष बाबू के साथ स्टेज पर पहुँचकर अतिथि विशेष एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव, सीनियर पुलिस ऑफीसर एस.के. भार्गव और शहर के कुछ अन्य विशिष्ट व्यक्तियों के द्वारा दीप-प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभ-आरम्भ किया गया।
*दीप-प्रज्वलन* का कार्यक्रम पूरा होने के बाद स्टेज-एनाउंसर शाल्विया पटेल ने सभी आगन्तुक अतिथियों का स्वागत-सम्मान करते हुए कहा-स्वागतम्, शुभ-स्वागतम्, आप सभी सम्माननीय दर्शकों का हार्दिक स्वागत करते हुए आज *बचपन-फॉउन्डेशन* अपार हर्ष का अनुभव कर रहा है। आपके द्वारा दिए गए आर्थिक सहयोग के लिए *बचपन-फॉउन्डेशन* सदैव आपका ऋणी रहेगा। *बचपन-परिवार* की ओर से किए जाने वाले इस चैरिटी-शो से जो धन-राशि हमें प्राप्त होगी, उसका उपयोग स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए एक निःशुल्क स्कूल खोलने के लिए किया जाएगा। इस स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ रहने, खाने-पीने आदि की सुविधाऐं भी निःशुल्क प्राप्त होंगी। काम बड़ा मुश्किल है और करने वाले हम सब छोटे-छोटे बच्चे हैं। पर हमारे बुलन्द हौंसले के पीछे आपके सहयोग और मार्ग-दर्शन की अजेय-शक्ति हमारे साथ है। इस *भागीरथ-प्रयास* को पूरा करने के लिए हमें आप सभी की शुभ-कामनाऐं और आशीर्वाद चाहिए। और तभी ज्ञान की पावन-गंगा, माँ शारदे के मन्दिर से उद्भव होकर स्लम-एरिया की झोंपड़ियों तक पहुँच सकेगी। अस्तु।
और एनाउंसर शाल्विया पटेल के वक्तव्य की समाप्ति होने के साथ ही हल्के-हल्के संगीत की मधुर ध्वनि से हॉल का वातावरण संगीत-मय होने लगा, रंग-बिरंगे प्रकाश से पूरा हॉल प्रकाशित होने लगा और नैपथ्य से मधुर स्वर सुनाई दिया-
तिलक, नारियल, दीप-घृत, किसलय, वन्दनवार।
अक्षत, रोली, जल-कलश, स्वस्तिक, चन्दन, द्वार।।
 और अब आपके सामने प्रस्तुत है दिव्य-लोक के बालक यॉल्सी, चॉल्सी और उनके अन्य साथियों द्वारा माँ, सरस्वती देवी की वन्दना, *पूजा-नृत्य*।
और एनाउंसमेंट तो अभी पूरा भी न हो पाया था कि तब तक तो वाध्य-यंत्र, शहनाई, ढोल, बाजा, तबला, आर्केस्ट्रा और लाइट एण्ड साउंड सिस्टम, सब के सब मचल पड़े थे, तन्मयता के साथ, स्वर के साथ ताल से ताल मिलाने को, ताक धिना-धिन धिन की थाप पर नृत्य करते बाल-कलाकारों के थिरकते पाँवों के साथ रिदम मिलाने को। और *पूजा-नृत्य* का स्वर था-
माँ! सरस्वती, शारदे।
माँ! सरस्वती, शारदे।।
निर्मल मन कर, निर्मल धन कर।
निर्मल  धरती  और  गगन  कर।
कलुशित मन को, माँ! सँवार दे।
माँ! सरस्वती, शारदे।
माँ! सरस्वती, शारदे।।
नृत्य समाप्त होते-होते तो सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँजने लगा था। जितने ऊँचे शोर से जोरदार तालियाँ बज रही उससे कई गुना ऊँचा बाल-कलाकारों का उत्साह और हौसला होता जा रहा था।
नैपथ्य से फिर से मधुर आवाज सुनाई दी-अब आपके सामने प्रस्तुत है राजस्थान का प्रसिद्ध नृत्य *कालबेलिया*। और तभी  नृत्य करती दो बाल-कलाकार महिलाऐं साँप की तरह से बल खाती, इठलाती हुई स्टेज की ओर बढ़ने लगीं। जो काँच के टुकड़ों व जरी-गोटे से तैयार की हुई सुन्दर काले रंग की कुर्ती, लहंगा और चुनरी पहने हुईं थीं। पुरुष बाल-कलाकार अपनी पारम्परिक राजस्थानी आदिवासी वेषभूषा को पहने हुए बड़ी ही तन्मयता के साथ बीन व ताल वाद्य बजा रहे थे।
नृत्य अपने चरम पर था और ग़जब तो तब हो गया, जब नृत्य के दौरान नृत्य करने वाली दो नृत्यांगनाओं में से एक ने अपनी आँखों की पलक से स्टेज पर पड़ी अँगूठी उठाकर दिखाया और दूसरी नृत्यांगना ने अपने मुँह से फर्श पर पड़े पैसे को उठाने की कलाबाजी दिखाई।
बाल-कलाकारों के अजब-गज़ब दृश्य को देखकर दर्शक-दीर्घा तो हक्का-वक्का ही रह गई। हर एक के मुँह से अनायास ही निकल पड़ा-वन्स-मोर, वन्स-मोर...., वन्स-मोर....।  और तालियाँ की गड़गड़ाहट तो थोक के भाव में हो रही थी।
तालियों की गड़गड़ाहट रुक भी न पाई थी कि नैपथ्य से फिर से वही मधुर आवाज सुनाई दी-और अब आपके सामने प्रस्तुत है उड़ीशा का आदिवासी नृत्य चाँगू। इस नृत्य को उड़ीशा के कोंधा समुदाय के आदिवासी स्त्री और पुरूष दोनों ही मिलकर करते हैं। स्त्रियाँ ज्यादातर लाल किनारे की सफेद साड़ी और पुरूष वहाँ की रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाक पहनते हैं। यह नृत्य खुले आसमान के नीचे चन्द्रमा की रोशनी के मध्यम प्रकाश में किया जाता है। तो अब प्रस्तुत है, आपके सामने उड़ीशा का आदिवासी नृत्य चाँगू।
चाँगू नृत्य समाप्त हुआ ही था कि नैपथ्य से फिर से एनाउंसर शाल्विया पटेल की मधुर आवाज सुनाई दी-और अब देखिए न, राजस्थान के ये बाल-कलाकार अपने-अपने गोरबन्दों की तारीफ करते-करते अघा नहीं रहे है। अब आप ही बताइए कि इनका गोरबन्द सच्ची-मुच्ची में नखराळो है या नहीं।  
और इसी आवाज के साथ ही संगीत की मधुर ध्वनि शहनाई, ढोल, बाजा, तबला, आर्केस्ट्रा और लाइट एण्ड साउंड सिस्टम के साथ प्रारम्भ हो गया ये मन-भावन लोकनृत्य...
ओ म्हारो गोरबन्द नखराळो,
लड़ली लूमा झूमा ऐ, लड़ली लूमा झूमा ऐ,
ओ म्हारो गोरबन्द नखराळो,
आलिजा म्हारो गोरबन्द नखराळो।
लड़ली लूमा झूमा ऐ, लड़ली लूमा झूमा ऐ,
ओ म्हारो गोरबन्द नखराळो,
आलिजा म्हारो गोरबन्द नखराळो।
ऐ ऐ ऐ गायाँ चरावती गोरबन्द गुँथियों,
तो भेंसयाने चरावती मैं पोयो पोयो राज,
मैं पोयो पोयो राज।
ओ म्हारो गोरबन्द नखराळो,
आलिजा म्हारो गोरबन्द नखराळो।
ओ लड़ली लूमा झूमा ऐ, लड़ली लूमा झूमा ऐ,
ओ म्हारो गोरबन्द नखराळो,
आलिजा म्हारो गोरबन्द नखराळो।

और अब हम आपको ले चलते हैं गुजरात के पावागढ़ में, जहाँ महाकाली माँ को वहाँ के लोग गरबा रम ने के लिए बुला रहे हैं और कह रहे हैं। एनाउंसर शाल्विया का एनाउंसमेंट पूरा होते ही गीत-संगीत के साथ बाल-कलाकारों का गरबा-डान्स चालू हो चुका था...

पंखिड़ा रे उड़ी ने जाजो पावागढ़ रे
मारी महाकाली ने जै ने कह्जो गरबे रमे रे...
मारी कालका माँ ने जै ने कह्जो गरबे रमे रे...
एक के बाद एक और एक से बढ़कर एक नृत्य प्रस्तुत किए जा रहे थे। न तो दर्शक-दीर्घा में बैठे हुए दर्शक ही हार मानने को तैयार थे और ना ही गीत-संगीत प्रस्तुत करने वाले असीम प्रतिभा के धनी बाल-कलाकार।
मयूर-डान्स करते समय तो बाल-कलाकारों की तन्मयता और तत्परता देखते ही बनती थी। पिहू-पिहु की आवाज के साथ पैरों के थिरकने का अन्दाज बेहद ही निराला था। पिहू-पिहु की मधुर आवाज के साथ मयूर-नृत्य लोगों को बेहद पसन्द आया।

बाम्बू-डान्स में बाँसों के आपस में लयबद्ध ढंग से बजाने की कला और पैरों का टाइमिंग बड़े सधे हुए कलाकार का परिचय दे रहा था। शास्त्रीय-संगीत पर आधारित नृत्य-नाटिका पर नृत्य करती बालिका की भाव-भंगिमा और उसके प्रत्येक अंग का अंदाज तो देखते ही बनता था।

और एनाउंसर शाल्विया पटेल ने जैसे ही भांगड़ा-डान्स के लिए एनाउंस किया और कहा-आऊँ ऊँ हूँ.., आऊँ ऊँ हूँ.., आऊँ ऊँ हूँ.., बल्ले..बल्ले.., हो..बल्ले..बल्ले..। ये देश है वीर जवानों का, अलवेलों का मस्तानों का। इस देश के यारो क्या कहना।

और क्या कहना के कहते-कहते तो पब्लिक एकदम मूड में आ गई। स्टेज पर तो केवल बारह बाल-कलाकार सरदार जी ही भांगड़ा-डान्स की मस्ती में थे पर स्टेज के सामने दर्शक-दीर्घा में तो बहुत सारे दर्शक अपनी सीट से खड़े होकर भांगड़ा-डान्स की मस्ती से अपने आप को बचा नहीं सके और खुद ही भांगड़ा-डान्स करने लगे। सारा वातावरण ही गीत-संगीत-मय हो गया था हॉल का। नृत्य और संगीत ने सभी को सराबोर कर दिया था।

और इस प्रोग्राम में हद तो तब हो गई जब वायु-लोक के एक बाल-कलाकार बालिका ने अपने सिर के ऊपर ही आग जलाकर, उसके ऊपर केतली में चाय बनाकर दिखा दिया और हैरत की तो बात यह थी कि बालिका का नृत्य एक पल को भी रुका नहीं। दर्शक देखकर हैरान थे।

पर कला तो कला ही होती है। जो कला अपने कला-कौशल से मानव-मन के तारों को झंकृत न कर सके, उसे कला भी तो नहीं कहा जा सकता है। बाल-कलाकारों के द्वारा प्रस्तुत किया गया हरेक नृत्य, हरेक गीत-संगीत सब कुछ तो दर्शकों के मन को भा गया था।

बाल-कलाकारों द्वारा प्रस्तुत सामाजिक नाटक *बेटी-बचाओ और बेटी-पढ़ाओ* ने दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी। यह नाटक दर्शकों के मन को आँखों के आँसुओं से भिगोने में सफल रहा। लोगों की आँखों को नम होते हुए देखा गया।

देश-विदेश के अनेक स्थानों से पधारे हुए बाल-कवियों का कवि-सम्मेलन पूरे चैरिटी-शो के आकर्षण के मुख्य केन्द्र रहा जिसे सभी दर्शकों ने, विशेषतौर पर युवा-वर्ग और बच्चों ने खूब-खूब सराहा। दर्शक वाह-वाह करने लगे जब एक बाल-कवि ने अपने कविता-पाठ करते हुए कहा-

बुरा न देखोबुरा सुनो  ना, बुरा न बोलो बोल रे,

वाणी में मिसरी तो घोलो, बोल-बोल को तोल रे।
मानव  मर जाता है लेकिन,
शब्द  कभी  ना   मरता  है।
शब्द-बाण से आहत मन का,
घाव  कभी  ना   भरता  है।
सौ-सौ बार सोच कर बोलो, बात यही अनमोल रे,
बुरा न देखो,  बुरा सुनो ना,  बुरा न बोलो बोल रे।
पांचाली  के  शब्द-बाण से,
कुरूक्षेत्र   रंग  लाल  हुआ।
जंगल-जंगल  भटके पांडव,
चीरहरण, क्या हाल  हुआ।
बोल सको तो अच्छा  बोलो, वर्ना मुँह मत खोल रे,
बुरा न देखो,  बुरा सुनो ना,  बुरा न बोलो बोल रे।
जो   देखोगे   और   सुनोगे,
वैसा  ही  मन  हो जायेगा।
अच्छी  बातें, अच्छा दर्शन,
जीवन  निर्मल  हो जायेगा।
अच्छा मन, सबसे अच्छा धन, मनवा जरा टटोल रे,
बुरा न देखो,  बुरा सुनो ना,  बुरा न बोलो बोल रे।
कोयल  बोले  मीठी वाणी,
कानों   में   रस   घोले  है।
पिहु-पिहु मन मोर नाचता,
सबके   मन   को  मोहे  है।
खट्टी अमियाँ  खाकर मिट्ठू,  मीठा-मीठा  बोल  रे।
बुरा न देखो,  बुरा सुनो ना,  बुरा न बोलो बोल रे।
और फिर दूसरे बाल-कवि ने गम्भीर मुद्रा बनाकर अपने उपदेशात्मक अंदाज में कविता-पाठ करते हुए जीवन में आगे बढ़ने का गुरू-मंत्र देते हुए कहा-
पीछे  मुड़कर  कभी न देखो, आगे ही  तुम  बढ़ते जाना,
उज्ज्वल ‘कल’ है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संधर्ष आज  तुमको करना है,
मेहनत  में  तुमको खपना है।
दिन और रात  तुम्हारे अपने,
कठिन  परिश्रम   में तपना है।
फौलादी  आशाऐं  लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्ति करते जाना,
पीछे  मुड़कर  कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है बहुत कीमती,
गया समय वापस  ना आता।
रहते  समय    जागे तुम तो,
जीवन  भर  रोना रह  जाता।
सत्यवचन सबको खलता है मुश्किल है सच को सुन पाना,
पीछे  मुड़कर   कभी  न  देखो, आगे  ही तुम बढ़ते जाना।
बीहड़  बीयावान   डगर  पर,
कदम-कदम  पर  शूल मिलेंगे।
इस   छलिया  माया नगरी में,
अपने   ही   प्रतिकूल   मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना,
पीछे  मुड़कर  कभी न देखो, आगे  ही तुम बढ़ते जाना।
और फिर सत्य-लोक से पधारे हुए एक बाल-कवि ने अपनी प्रेरणा-दायी कविता *अमृत-कलश बाँट दो जग में* सुनाते हुए कहा-
अगर  हौसला  तुम  में  है तो,
कठिन  नहीं   है   कोई  काम।
पाँच - तत्व   के  शक्ति - पुंज,
तुम  सृष्टी  के अनुपम पैगाम।
तुम  में  जल है, तुम में थल है,
तुम   में  वायु  और  गगन  है।
अग्नि-तत्व  से   ओत-प्रोत तुम,
और  सुकोमल  मानव  मन है।
संघर्ष  आज, कल  फल   देगा,
धरती  की  शक्ल  बदल देगा।
तुम  चाहो  तो इस धरती पर,
सुबह   सुनहरा   कल   होगा।
विकट  समस्या   जो  भी  हो,
वह उसका  निश्चित हल देगा।
नीरस  जीवन   में  भर  उमंग,
जीवन   जीने  का  बल  देगा।
संधर्षहीन जीवन क्या जीवन,
इससे तो  बेहतर  मर  जाना।
फौलादी    ले    नेक    इरादे,
जग   को  बेहतर  कर  जाना।
मानव-मन  सागर   से  गहरा,
विष,  अमृत  दोनों  हैं घट में।
विष पी लो विषपायी बन कर,
अमृत-कलश  बाँट  दो जग में।

और फिर कवि-सम्मेलन के अन्त में आरती ने बेटी-युग के नए दौर के आगमन की धोषणा करते हुए बताया कि आज की बेटी सशक्त भी है और वह समर्थ भी है। उसमें देश के लिए और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का बुलन्द हौसला भी है।

और उसने इसी सन्दर्भ में अपनी लिखी हुई एक कविता भी सुनाई जो कि उसके बचपन फाउंडेशन का श्लोगन और मूलमंत्र भी थी..

नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग    में    बेटा-बेटी,
सभी   पढ़ेंगे,  सभी  बढ़ेंगे।
फौलादी   ले   नेक  इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश  पढ़ेगा, देश  बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटा  शिक्षित, आधी शिक्षा,
बेटी  शिक्षित  पूरी  शिक्षा।
हमने सोचा,मनन करो तुम,
सोचो समझो करो समीक्षा।
सारा जग शिक्षामय करना,हमने सोचा मन में ठानी।
बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
अब कोई ना अनपढ़ होगा,
सबके  हाथों पुस्तक होगी।
ज्ञान-गंग  की पावन धारा,
सबके आँगन तक पहुँचेगी।
पुस्तक और पैन की शक्ति,जग जाहिर जानी पहचानी।
बेटी-युग के  नए दौर की, आओ  लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग   सम्मान-पर्व  है,
दान-पर्व  है,  ज्ञान-पर्व  है।
सब सबका सम्मान करे तो,
जीवन  का  उत्थान-पर्व है।
सोने की चिड़िया बोली है, बेटी-युग की हवा सुहानी।
बेटी-युग के नए  दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।

कविता समाप्त होते ही आरती ने दर्शकों से नारे लगवाते हुए कहा- भाईयो, अब आप सभी मेरे साथ-साथ बोलेंगे- बेटी हम पढ़ाऐंगे तो दर्शक-दीर्घा से आवाज आई- आगे देश बढ़ाऐंगे। और फिर आरती ने बोला- बेटी हम बचाऐंगे तो दर्शक-दीर्घा से फिर आवाज आई- आगे देश बढ़ाऐंगे। और ऐसे एक नहीं अनेक नारे लगे। सारा हॉल ही बेटी-युग के रंग में रंग गया था।
 इधर तालियों की गड़गड़ाहट ने दर्शकों के मन की बात कह दी थी। अब तो दर्शक-दीर्घा में बैठे हुए दर्शक वन्स-मोर, वन्स-मोर... वन्स-मोर... के शोर से और भी बहुत आगे बढ़ चुके थे।
अब तो उनका शोर कुछ और ही था और वे जोर-जोर से बार-बार यही कह-कहकर निवेदन कर रहे थे- वन शो मोर.., वन शो मोर..., वन शो मोर...।
दर्शकों की यह डिमाण्ड तो बड़े जोर-शोर से उठने लगी थी। हर कोई आरती और *बचपन-फॉउन्डेशन* के बच्चों के द्वारा उठाए गए, इस साहसिक कार्य की सराहना भी कर रहा था और ऐसे पुण्य-कार्य में अपने को सहभागी भी बनाना चाहता था।

कई संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने इस विषय में चैरिटी-शो के ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम शिकारी और घोष बाबू से सम्पर्क भी कर लिया था। विक्रम शिकारी और घोष बाबू ने उन्हें और भी शो करने का आश्वासन भी दे दिया।

और समारोह के अन्त में अपने अध्यक्षीय भाषण में अतिथि विशेष एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव ने बताया कि पीएम श्री और सरकार ने *बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा दिए गए कॉन्सेप्ट को स्वीकार करते हुए *फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूलस्* को बनाने का निर्णय ले लिया है और अब इसी सत्र से उन स्कूलों में भी एडमीसन होना शुरू हो जाऐंगे।
गरीब बच्चों के लिए पढ़ाई अब आसान हो जाएगी और सभी गरीब बच्चे अब निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। सरकार की ओर से ही उन्हें रहने, खाने-पीने की सुविधाऐं भी निःशुल्क मुहैया कराई जाऐंगी।   
साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जो सेवा-भावी सामाजिक संस्थाऐं इस तरह के *फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूलस्* खोलना चाहेंगीं, उन्हें सरकार जमीन मुहैया कराने के साथ-साथ भवन निर्माण और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं के लिए सब्सिडी की सहायता और सहयोग भी देगी।
सेवाभावी सामाजिक संस्थाओं को इस सेवा-भावी पुण्य-कार्य में आगे आकर पहल करनी चाहिए। और इससे सम्बन्धित एक जीआर एज्यूकेशन मिनिस्ट्री की ओर से सभी सम्बन्धित विभागों और समाचारपत्रों को भेजा जा चुका है।
अन्त में मैं आरती, रॉनली, घोष बाबू और चैरिटी-शो के सभी आयोजकों को बहुत-बहुत धन्यवाद देना चाहती हूँ जिनके अथक परिश्रम से इतने बड़े कार्य का शुभ आरम्भ हो सका। और सबसे अधिक बधाई और सम्मान के पात्र तो हैं हमारे नन्हें-मुन्ने बाल-कलाकार, जिनके बिना तो सब कुछ अधूरा ही था।
और प्रोग्राम के अन्त में आरती ने सभी आगन्तुक दर्शक-गण, मंच पर विराजित सम्माननीय अतिथि सीनियर पुलिस ऑफीसर एस.के.भार्गव और अतिथि विशेष एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव को हृदय से धन्यवाद देते हुए उनके द्वारा दिए गए सहयोग की सराहना की।
साथ ही प्रधानमंत्री श्री के द्वारा गरीब और स्लम-एरिया में रहने वाले बच्चों के लिए निःशुल्क स्कूल खोलने के लिए उठाए गए कदम की सराहना भी की। साथ ही आरती ने यह भी बताया कि हम इस प्रोग्राम से भी और अधिक अच्छा और दूसरा बड़ा प्रोग्राम शीघ्र ही आयोजित करने जा रहे हैं। हमें आपके सहयोग की सदैव ही अपेक्षा रहेगी। 
और दो-तीन दिनों के बाद ही शिक्षा-विभाग के कार्यालय में एक सीनियर अधिकारी की टेबल पर *बचपन-फॉउन्डेशन* की ओर से स्कूल खोलने के लिए दिया गया एक आवेदन-पत्र देखा गया। आवेदक का नाम था घोष बाबू।

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