Sunday, 27 December 2020

‘मधुऋतु’

खेत-खेत   में   सरसों  झूमेसर - सर  वहे  वयार,

मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

धानी  रंग  से  रंगी धरा,

परिधान   वसन्ती  ओढ़े।

हर्षित  मन  ले लजवन्ती,

मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।

चारों  ओर  वसन्ती  आभाहर्षित  हिया  हमार,

मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

सूने-सूने  पतझड़  को  भी,

आज वसन्ती प्यार मिला।

प्यासे-प्यासे  से नयनों को,

जीवन का  आधार मिला।

मस्त  गगन हैमस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,

मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,

धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।

ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,

जाने की जल्दी आज पड़ी हो।

और कोकिला  कूँक-कूँककर, गाये मंगल ज्योनार,

मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

पीली चूनर ओढ़ धरा अब,

कर  सोलह  श्रृंगार  चली।

गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,

बाग-बाग  में  कली-कली।

या   फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,

मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

-आनन्द विश्वास









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