Monday 24 August 2015

*चमत्कारी सिक्का*

*चमत्कारी सिक्का*
(यह कहानी मेरे बाल उपन्यास
बहादुर बेटी
(Bahadur Beti)
से ली गई है।)
...आनन्द विश्वास
सोसायटी के कम्पाउण्ड में साइकिल चला रही थी आरती। वह अपना चौथा चक्कर पूरा कर चुकी थी और पाँचवाँ चक्कर लगाने की तैयारी में थी। उसके दूसरे साथी तो अभी तीसरा चक्कर ही पूरा कर पाये थे। अतः उसने थोड़ा सुस्ताने और आराम करने का मन बनाया और अपने दूसरे सभी साथियों के आने का इन्तज़ार करने लगी। 
तभी उसकी नज़र कौने में पड़ी हुई एक चमकीली वस्तु पर पड़ी। उसने अपनी साइकिल को साइड-स्टैण्ड पर खड़ा किया और फिर उस चमकदार चीज को बड़े ध्यान से देखने लगी।
बिलकुल पाँच रुपये के सिक्के के बराबर ही था वह चाँदी का चमचमाता हुआ सफेद सिक्का। और उसमें से लगातार तरह-तरह का रंग-बिरंगा प्रकाश निकल रहा था।
ऐसे अद्भुत सिक्के को कचरे के ढ़ेर के पास पड़ा देखकर, पहले तो आरती ने सोचा कि पड़ा है तो पड़ा ही रहने दो न, इसे यहीं पर। जिसका होगा वह अपने आप उठाकर ले जायेगा, मुझे क्या।
पर दूसरे ही क्षण उसके मन में विचार आया कि यदि यह चाँदी का सिक्का किसी दूसरे गलत व्यक्ति के हाथों में पड़ गया तो हो सकता है कि यह सही व्यक्ति के पास तक न पहुँच सके।
ऐसा सोच कर उसने उस चमकीले चाँदी के सिक्के को उठाकर अपने पास में रखने का मन बना लिया ताकि वह उस सिक्के को सही व्यक्ति के पास तक पहुँचा सके।
लेकिन जैसे ही उसने उस चमकीले सिक्के को उठाने के लिये अपना हाथ आगे बढ़ाया, उसे एक अज्ञात आवाज सुनाई दी।
सुनो आरती, ये चमकीला चाँदी का सिक्का जो तुम्हारे सामने पड़ा हुआ है, यह सिक्का किसी और के लिये नही है, यह तो सिर्फ तुम्हारे लिये ही है और मैं ही इस सिक्के को अपने दिव्य-लोक से तुम्हारे लिये ही लेकर आया हूँ। 
अज्ञात आवाज को सुनकर आरती तो चौंक ही पड़ी। उसने इधर-उधर और अपने चारों ओर देखा, कोई भी तो नज़र नहीं आ रहा था उसे उसके आस-पास। अतः क्रोधित होकर उसने जोर से ऊँची आवाज में कहा-कौन है ये, जो मेरा नाम लेकर मुझे पुकार रहा है और मुझे दिखाई भी नहीं दे रहा है।
मुझे अपना दोस्त ही समझो, आरती। मैं ही अपने दिव्य-लोक से यह चाँदी का चमकीला सिक्का तुम्हारे लिये लेकर आया हूँ। उस अज्ञात आवाज ने आरती से कहा।
यह चमकीला चाँदी का सिक्का तुम मेरे लिये ही लेकर क्यों आये हो और तुम मुझे दिखाई भी नहीं दे रहे हो। आखिर इसका क्या कारण है । आरती ने प्रश्न किया।   
हमारे दिव्य-लोक के किसी भी प्राणी को तुम्हारे पृथ्वी-लोक का कोई भी प्राणी देख ही नहीं सकता है और यदि तुम मुझे देखना ही चाहते हो और मुझसे बात-चीत भी करना चाहते हो तो मैं तुम्हें उसका रास्ता भी सुझा सकता हूँ। अज्ञात अदृश्य आवाज ने आरती से कहा।
वह कैसे, तुम्हें देखने के लिए और तुमसे बात-चीत करने के लिये मुझे क्या करना होगा। कहीं तुम मुझसे कोई छल-कपट या धोखा तो नहीं कर रहे हो, मुझे साफ-साफ बताओ। आरती ने दृढ़ता के साथ कहा।
नहीं आरती, हमारे दिव्य-लोक में छल-कपट और धोखे का तो कोई भी स्थान होता ही नहीं है। हमारे लोक में तो बालक भगवान का स्वरूप होते हैं और फिर बाल-मन तो वैसे भी ऋषि-मन होता है।अज्ञात आवाज ने आरती को विश्वास दिलाया।
तब ठीक है, अब मैं तुम्हारा मित्र बनने के लिये तैयार हूँ। पर इस बात का ध्यान रहे कि तुम्हारे वचन और आचरण में कोई भी छल-कपट नहीं होना चाहिये। मुझे छल-कपट और धोखे से बेहद नफरत है। आरती की आवाज में दृढ़ता थी। 
विश्वास रखो आरती, ऐसा कुछ भी नहीं होगा। मित्रता में शंका का कोई भी स्थान नहीं होता है। मित्रता में तो समर्पण का भाव होता है और समर्पण-भाव तो छल, कपट और धोखे से परे होता है। अज्ञात आवाज ने आरती को आश्वासन दिया।
तो शीघ्र बताओ, तुम्हें देखने के लिये मुझे क्या करना होगा। आरती ने पुनः प्रश्न किया।
आरती, तुम इस सिक्के को अपने हाथ में उठा लो और जैसे ही तुम इस सिक्के को अपने हाथ में उठाओगे, इसमें से निकलने वाला रंग-बिरंगा प्रकाश तुरन्त ही बन्द हो जायेगा और फिर तुम्हें इसके ऊपर तीन बटन दिखाई देंगे। एक हरा, दूसरा लाल और तीसरा गुलाबी। जब तुम गुलाबी रंग के बटन को दबाओगे तब तुम्हारे पास मुझे देखने की दिव्य-शक्ति आ जायेगी। तब तुम मुझे देख भी सकोगे और मुझसे बात-चीत भी कर सकोगे। अज्ञात आवाज ने आरती को सुझाया।
अज्ञात आवाज के परामर्श को, अपने मित्र का सुझाव मानते हुये, आरती ने चमचमाते हुये चाँदी के उस सिक्के को अपने हाथ में उठा लिया। 
अरे यह क्या, सिक्के को हाथ में उठाते ही उसमें से निकलने वाला रंग-बिरंगा प्रकाश तुरन्त ही बन्द हो गया और उसके ऊपर हरे, लाल और गुलाबी रंग के छोटे-छोटे तीन चमकीले बटन दिखाई देने लगे। 
गुलाबी रंग के बटन को दबाते ही दिव्य-लोक से आया हुआ वह अद्भुत बालक आरती को दिखाई दे गया। जो कि आरती के बिलकुल सामने ही खड़ा हुआ था।
गोल-मटोल, सुन्दर, आकर्षक-व्यक्तित्व और दैवीय गुणों से सम्पन्न वह दिव्य-बालक।
आरती के मन को भा गया था, दैवीय-गुणों से सम्पन्न वह दिव्य-बालक और उससे भी अधिक आरती भा गई थी, उस दिव्य-लोक के दैवीय-गुणों से सम्पन्न अलौकिक दिव्य-बालक को।
तुम तो बहुत अच्छे हो, मित्र। बिलकुल सीधे-साधे, एक-दम सरल और सौम्य-व्यक्तित्व। तुम्हें तो दोस्त बनाने का हर किसको मन करेगा। क्या नाम है तुम्हारा?” आरती ने उस अज्ञात आवाज वाले दिव्य-लोक से आये हुये बालक से पूछा।  
मेरा नाम रॉनली है आरती। और मैं तुम्हारे पृथ्वी-लोक से कुछ ही दूरी पर स्थित अपने दिव्य-लोक में अपने मम्मी-पापा, भाई-बहन और अपने पूरे परिवार के साथ रहता हूँ। उस अज्ञात आवाज वाले दिव्य-लोक के बालक ने मुस्कुराते हुए बड़ी ही शालीनता के साथ उत्तर दिया।
रॉनली, बड़ा ही सुन्दर और प्यारा नाम है तुम्हारा। सच में रॉनली, तुम जैसे सुन्दर हो, वैसा ही सुन्दर तुम्हारा नाम भी है। तुमसे दोस्ती करके मुझे बहुत प्रसन्नता होगी और इतना ही नहीं मेरे दूसरे दोस्तों को भी तुमसे दोस्ती करने में बहुत ही प्रसन्नता होगी। आरती ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हुये रॉनली से कहा।
आरती, तुम जैसे अच्छे दोस्त को पाकर केवल मुझे ही नहीं बल्कि हमारे दिव्य-लोक के और भी बहुत से बाल-मित्रों को गर्व और प्रसन्नता की अनुभूति होगी। रॉनली ने ऐसा कहते हुये अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त की।
 आरती और रॉनली की आपस में बात-चीत चल ही रही थी कि तब तक तो आरती के दूसरे साथी मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, शाल्विया और भास्कर अपनी-अपनी साइकिलों पर चौथा चक्कर पूरा करके वापस आ चुके थे और आरती को ढूँढ ही रहे थे। 
अब आरती के सामने यह समस्या थी कि वह अपने सभी साथियों के साथ साइकिल पर सोसायटी के ग्राउण्ड के चक्कर लगाये और अपने दिव्य-लोक के नए मित्र रॉनली को इग्नोर कर दे या फिर रॉनली के साथ बात-चीत करे और उसके दिव्य-लोक के व्यक्तियों और वहाँ के लोगों के रहन-सहन के विषय में अधिक से अधिक जानकारियाँ और परिचय प्राप्त करे।
रॉनली आरती के मन की बात को और उसके मन में उठ रही समस्या को तुरन्त ही जान गया। उसने अपने सीधे हाथ को हवा में ऊपर-नीचे हिलाया और फिर आरती से कहा-आरती, अब तुम बिलकुल निश्चिन्त रहो, मैने तुम्हें और तुम्हारी साइकिल को, तुम्हारे सभी मित्रों से अदृश्य कर दिया है। अब वे तुम्हें और तुम्हारी साइकिल को नही देख सकेंगे।
और सचमुच ही आरती के अन्य सभी साथी, मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, शाल्विया, सार्थक और भास्कर, आरती को आवाज लगा-लगाकर इधर-उधर ढूँढ़ रहे थे। जबकि आरती तो उनके पास और बिलकुल उनके सामने ही खड़ी हुई थी। आरती उन्हें दिखाई नहीं दे रही थी। पर आरती उन सभी को स्पष्ट रूप से देख भी पा रही थी और उनकी आपस में होने वाली बात-चीत को स्पष्ट रूप से सुन भी पा रही थी।  
ऐसे आश्चर्य-जनक कारनामे को देखकर आरती को अच्छा तो लगा, साथ ही शंका भी उत्पन्न हुई। कहीं रॉनली कोई जादू-वादू तो नहीं कर रहा है और वैसे भी शंका का उत्पन्न होना स्वाभाविक ही था। किसी अज्ञात व्यक्ति के ऊपर पूर्ण-रूप से विश्वास भी तो नहीं किया जा सकता है और वह भी पहली ही मुलाकात में।
अतः वह रॉनली से पूछ ही बैठी-ऐसा क्या किया रॉनली तुमने, जिससे मैं और मेरी साइकिल, मेरे सभी मित्रों से अदृश्य हो गये और तुम मुझे अभी भी देख सकते हो। तुम कोई जादूगर तो नहीं हो। सच-सच बताओ, रॉनली। मुझे तो डर लग रहा है, यदि ऐसा है तो, मुझे नहीं करनी तुमसे दोस्ती-वोस्ती, कुछ भी।
नहीं आरती, मैं कोई जादूगर नहीं हूँ। अच्छा आरती अब जरा तुम ऐसा करो, अपने पास में रखे हुये सिक्के का गुलाबी बटन फिर से दबाओ।रॉनली ने आरती से कहा।
और ये क्या, जैसे ही आरती ने सिक्के का गुलाबी बटन दबाया वैसे ही रॉनली भी अदृश्य हो गया। अब तो आरती, रॉनली को भी नहीं देख पा रही थी और अपने सभी साथी मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, शाल्विया, सार्थक और भास्कर उसे पहले से ही नहीं देख पा रहे थे। अजीव संकट में पड़ गई थी आरती।  
अब तो आरती की परेशानी और भी अधिक बढ़ गई थी। और सबसे अधिक परेशानी तो इस बात की थी कि यदि वह इसी तरह से हमेशा हमेशा के लिए अदृश्य बनी रही तो फिर शाम को घर पर पहुँच कर वह कैसे अपने मम्मी और पापा से बात-चीत कर सकेगी, घर पर वह कैसे खाना खा सकेगी और फिर कैसे वह अपने स्कूल जाकर अपनी पढ़ाई कर सकेगी। और जब उसे कोई देख ही नहीं सकेगा तो फिर वह अपना शेष जीवन कैसे गुजारेगी।
कल्पना मात्र से ही सिहिर उठी थी आरती। कुछ भी तो समझ में नहीं आ रहा था आरती को। अपनी समस्या को वह कहे भी तो कैसे कहे और किससे कहे। जब कोई उसे देख ही न सकता हो और ना ही सुन सकता हो। वह अदृश्य हो गई थी न और रॉनली को वह देख नहीं सकती थी।
भयभीत आरती ने बड़े जोर से चिल्लाकर रॉनली को आवाज लगाते हुये कहा-रॉनली, तुम कहाँ हो। अब तो मैं तुम्हें भी नहीं देख पा रही हूँ। मैं तो हैरान-परेशान हो गई हूँ। अजीव संकट में डाल दिया है तुमने। मुझे बताओ तो सही कि अब मैं क्या करूँ।
जरा भी चिन्ता मत करो आरती, मैं अभी भी तुम्हारे पास में ही हूँ। अब तुम अपने पास में रखे हुए चमत्कारी सिक्के का गुलाबी बटन दुबारा दबाओ।रॉनली ने आरती को सुझाया।
और जैसे ही आरती ने सिक्के का गुलाबी बटन दबाया, रॉनली को उसने अपने सामने ही खड़ा हुआ पाया। रॉनली ने मुस्कुराते हुये आरती से कहा-आरती, ये कोई जादू-वादू नहीं है, ये सब तो इस सिक्के में लगे हुये चमत्कारी चिप का कमाल है। 
उसने आरती के हाथ से सिक्का लिया और फिर उसमें लगे हुए चमत्कारी चिप को बाहर निकालकर सिक्का वापस देते हुये आरती से कहा-लो आरती, अब तुम इसका गुलाबी बटन दबाओ।
आरती ने सिक्के का गुलाबी बटन दुबारा दबाया, पर कुछ भी तो न हुआ। न तो कोई गायब ही हुआ और ना ही कोई प्रकट हुआ। सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा, जैसा पहले था।
अब तुम इस चमत्कारी चाँदी के सिक्के के किसी भी बटन को दबा सकते हो, आरती। कुछ भी नहीं होने वाला है।रॉनली ने आरती से कहा।
और फिर आरती ने एक-एक करके सिक्के के सभी बटनों को बारी-बारी से दबाया, कुछ भी तो नहीं हुआ। अब आरती को समझने में देर न लगी कि यह सब कुछ तो उस सिक्के में लगे हुये चमत्कारी चिप का ही कमाल था। चमत्कारी चिप के कारण ही रॉनली अदृश्य हो गया था।
रॉनली ने आरती से चमत्कारी सिक्का लेकर उसमें चिप को दुबारा लगाकर चमत्कारी सिक्के को वापस देकर कहा-आरती, इस चमत्कारी सिक्के को तुम और केवल तुम ही अपने दायें हाथ के अँगूठे से ऐक्टीवेट कर सकते हो और दूसरा कोई भी व्यक्ति इसे ऐक्टीवेट नहीं कर सकता है। दूसरे किसी भी व्यक्ति के लिये यह सिक्का मात्र एक धातु का टुकड़ा ही है और यह सिक्का अदृश्य रूप में सदैव ही तुम्हारे पास बना रहेगा। 
  रॉनली, आरती के और भी अनेकों प्रश्नों को सुलझाने जा रहा था। वह दिव्य-लोक के विषय में और भी अनेकों जानकारियाँ आरती को देना चाहता था और पृथ्वी-लोक के विषय में बहुत कुछ जानकारियाँ आरती से लेना भी चाहता था। पर तभी उसके बाँये हाथ के अँगूठे ने वॉइब्रेट करना शुरू कर दिया। शायद कोई मैसिज़ था उसके लिये, किसी अन्य लोक से। 
दूसरी ओर से आवाज आई-हलो रॉनली, अभी तुम कहाँ हो, तुम्हारे सौम्य-लोक के कुछ मित्र तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं। 
मम्मी, मैं अभी तो पृथ्वी-लोक पर अपने नये मित्र आरती के पास में हूँ। मैं शीघ्र ही घर पर आ रहा हूँ। इतना कहकर रॉनली ने अपने अँगूठे को दूसरे हाथ से स्पर्श किया। और अब अँगूठे का वॉइब्रेशन बन्द हो चुका था।   
आरती की ओर देखते हुये रॉनली ने कहा-आरती, अभी तो मुझे घर पर जाना ही होगा। मेरी मम्मी का मैसिज़ है मुझे घर पर बहुत जल्दी पहुँचना है। सौम्य-लोक के कुछ मित्र मुझसे मिलने आये हुए हैं। कल इसी समय मैं तुमसे फिर मिलने आऊँगा।
 ठीक है रॉनली, मैं तुम्हारा इन्तज़ार करूँगी। ऐसा कहकर आरती ने रॉनली को जाने की अनुमति दे दी।
रॉनली ने अपने हाथ को हवा में ऊपर-नीचे हिलाया और फिर आरती से कहा-आरती, अब तुम्हारे सभी मित्र तुम्हें और तुम्हारी साइकिल को देख सकेंगे और तुम उन्हें देख सकोगे। अब तुम उनके लिये और वे तुम्हारे लिये दृश्य हो गये हो।
ऐसा कहकर रॉनली ने आरती से विदा ली और आकाश में अदृश्य हो गया। आरती ने अपने आप को अपने अन्य सभी साथी मानसी, शर्लिन, अल्पा, कल्पा, शाल्विया, सार्थक और भास्कर के पास खड़ा हुआ पाया। 
कहाँ पर थी आरती तू अभी तक, हम सब लोग तो कितनी देर से तुझे इधर-उधर ढूँढ रहे हैं।शर्लिन ने व्यथित मन से आरती से कहा।
कहीं भी तो नहीं, यहीं पर ही तो थी मैं। पता नहीं, तुम लोग मुझे कहाँ ढूँढ रहे थे। आरती ने विषय बदलने का प्रयास किया।
 नहीं आरती, हमने तो तुझे ढूँढते-ढूँढते सोसायटी का हर एक कोना छान मारा, पर तू तो हमें कहीं भी नहीं दिखाई दी। शर्लिन ने एक बार फिर से अपना अकाट्य तर्क प्रस्तुत किया।
चल हट, झूँठी कहीं की, कोई भी तो कोना नहीं छाना होगा तूने। खाली-पीली गप्पा मार रही है बस, गप्पूड़ी कहीं की। ऐसा कहकर आरती ने वातावरण में मिठास घोलने का प्रयास किया।
और फिर अत्यन्त चतुराई के साथ, बड़े ही प्यार भरे लहज़े में विषय को बदलते हुए मुस्कुराकर शर्लिन से कहा-चल न शर्लिन, अपन साइकिल चलाते हैं और फिर अभी तो मेरा मैथ्स का भी ढ़ेर सारा होम-वर्क बाकी पड़ा है, उसे भी तो पूरा करना है।    
और बड़ी कुशलता के साथ वह अपने अदृश्य होने की बात को और रॉनली से हुई अपनी मुलाकात की बात को अपने सभी मित्रों से छुपा गई।
*****

...आनन्द विश्वास

Tuesday 11 August 2015

Bahadur Beti (बहादुर बेटी)

Bahadur Beti
*बहादुर बेटी*
(बाल-उपन्यास)
कहानी
है
बहादुर बेटी
आरती
की
जिसने पीएम के ड्रीमलाइनर विमान को आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त कराया।
→ जिसने तीन-तीन खूँख्वार आतंकवादियों को बेहोश कर सरकार के हवाले कर दिया।
→ जिसने घाटी में से आतंकवादियों और उनके आतंकी अड्डे को तहस-नहस कर डाला।
→ जिसने पुस्तक और पैन को घर-घर तक पहुँचाकर घाटी में विकास की नई गाथा लिख दी।
→ जिसने घाटी के रैड ब्लड ज़ोन का विकास कर देशी और विदेशी इन्वैस्टर्स के लिए रैड कॉर्पेटस् बिछवा दिए।
→ जिसकी बदौलत एके-47 थामने वाले सशक्त युवा हाथों में आज ऐंड्रोंयड-वन आ गए।
→ जिसकी बदौलत रायफल्स की ट्रिगर पर घूमने वाली सशक्त युवा-हाथों की अंगुलियाँ अब कॉम्प्यूटर और लैपटॉप के की-बोर्ड के साथ खेलने लगीं।
→ जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर अनेक चैरिटी-शो करके स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब और अनाथ बच्चों के लिए फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खोले।
→ जिसने अपने स्कूल का उद्घाटन पीएम श्री से करवाया और जिससे प्रेरणा लेकर स्वयं पीएम श्री ने भी हर स्टेट में इसी प्रकार के फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खुलवाए।
→ जिसने बेटी पढ़ाओ और देश बढ़ाओ के आन्दोलन को गतिशील बनाया। उसने कहा... 
बेटा  शिक्षित, आधी शिक्षा,
बेटी  शिक्षित, पूरी  शिक्षा।
→ जिसने बेटी के शिक्षा और सुरक्षा के अभियान को घर-घर तक पहुँचाकर सशक्त बनाया। उसने कहा...
हार  जाओ  भले, हार मानो  नहीं।
तन से हारो भले, मन से हारो नहीं।
→ तभी तो प्रेस और मीडिया की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की बहादुर बेटी आरती बोल रही थी और पीएम का मन पिघल रहा था।
→ विशाल देश के सशक्त पीएम की आँखों में पहली बार आँसू देखे गए। उन्हें रह-रह कर बस, यही ख्याल आ रहा था कि देश के बच्चे जिस काम को करने का अपना मन बना सकते हैं और कुछ करने का बीड़ा उठा सकते हैं तो हम इतनी बड़ी सत्ता और सामर्थ्य के होते हुए भी, उन स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के उत्थान के विषय में, क्या सोच भी नहीं सकते।
→ और जबकि मैं भी तो उन्हीं बच्चों में से एक बच्चा हूँ जिसने अपने संघर्ष-मय जीवन की शुरुआत ही, स्लम-एरिया की उस छोटी-सी झोंपड़ी से की थी। वह भी तो कभी स्लम-एरिया में रहकर ही अपनी गुजर-बसर किया करता था और लैम्प-पोस्ट के नीचे टाट के बोरे पर बैठकर गणित के सवाल किया करता था।
→ कैसे भूल सकता हूँ मैं अपनी जिन्दगी के वे गर्दिश के दिन, जब मैं खुद किसी सेठ की एक छोटी-सी दुकान पर काम किया करता था।
→ गरीबी की सौनी-गंध तो आज भी उनके मन-मस्तिष्क पर अटी पड़ी थी।
→ बाल-उपन्यास की हर घटना अपने आप में रोचक बन पड़ी है जो पाठक-गण को चिन्तन, मनन और सोचने के लिये विवश करेगी।
-आनन्द विश्वास
सी-85, ईस्ट एण्ड एपार्टमेंटस्
न्यू अशोक नगर मैट्रो स्टेशन के पास
मयूर विहार फेज़-1 (एक्टेंशन)
नई दिल्ली- 110 096
मो. 09898529244, 7042859040
विशेषः- बाल-उपन्यास उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ से प्रकाशित किया गया है और विक्रय के लिए उपलब्ध है। जिसकी पृष्ठ संख्या-152 और मूल्य-150/- है।
उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ
142, शाक्य पुरी, कंकरखेड़ा
मेरठ कैन्ट-250 001
फोनः 0121-2632902, 09897713037
ई मेलः uttkarshprakashan@gmail.com.
-आनन्द विश्वास

Sunday 9 August 2015

एप्पल में गुण एक हजार

एप्पल में गुण एक हजार
...आनन्द विश्वास

एप्पल  में   गुण   एक  हजार,
एप्पल  खाओ  हर दिन  चार।
नित्य नियम  से जो  खाता है,
हृष्ट-पुष्ट   वह   हो  जाता  है।

एप्पल  का  भैया क्या कहना,
सुन्दरता   का  ये  है   गहना।
चेहरा  दमके  हर  दम  लाल,
एप्पल  करता  बड़ा  कमाल।

वात-पित्त-कफ़ दोष विनाशक,
सभी फलों का एप्पल  शासक।
कब्ज,  दस्त,  सरदर्द  मिटाए,
खांसी   सर्दी   पास  न  आए।

बीपी   का   अक्सीर  इलाज,
बात  पते  की   कहता  आज।
आधि-व्याधि सब दूर भगाता,
डॉक्टर पास  फटक ना पाता।

सब  रोगों   की  एक  दवा है,
खाया  एप्पल, रोग  हवा  है।
डॉक्टर  भी  अक्सर  कहते हैं,
वे  भी  ज्यूस  पिया  करते हैं।

छिलका सहित चबाकर खाओ,
मन  भाए  तो  ज्यूस  बनाओ।
एप्पल  ज्यूस बगल का तोशा,
मंज़िल  का  है   पूर्ण  भरोसा।
...आनन्द विश्वास

चित्र गूगल से साभार

Friday 7 August 2015

केला खाओ, हैल्थ बनाओ

केला खाओ, हैल्थ बनाओ
...आनन्द विश्वास

सबसे  सस्ता, सबसे  अच्छा,
केला  खाओ, हैल्थ  बनाओ।
नहीं   अकेले,  नहीं  अकेला,
दो-दो  खाओ और खिलाओ।
एक  इलायची, दो-दो  केले,
खुद भी खाओ और खिलाओ।
खुद खाने  से शक्ति  मिलेगी,
और खिलाकर पुण्य कमाओ।
केला  नहीं   अकेला   होता,
इसकी अतुलित शक्ति पाओ।
शहद दूध  के संग  में खाओ,
और  बोन्स  स्ट्रोंग  बनाओ।
कच्चा  केला  बड़ा  निराला,
इसकी  सब्जी रोज बनाओ।
केला  खान  गुणों  की भैया,
बीमारी  को   दूर   भगाओ।

...आनन्द विश्वास