Tuesday, 29 September 2015
Friday, 25 September 2015
बच्चो,चलो चलाएं चरखा
बच्चो,चलो
चलाएं चरखा
...आनन्द
विश्वास
बच्चो,
चलो चलाएं चरखा,
बापू
जी ने इसको
परखा।
चरखा
अगर चलेगा घर-घर,
देश
बढ़ेगा इसके दम
पर।
इसको
भाती नहीं गरीबी,
ये
बापू का बड़ा
करीबी।
चरखा
चलता चक्की चलती,
इससे
रोटी-रोज़ी मिलती।
ये
खादी का मूल-यंत्र
है,
आजादी
का
मूल-मंत्र है।
इस
चरखे में स्वाभिमान है,
पूर्ण स्वदेशी का गुमान
है।
इसे
चलाकर
खादी
पाओ,
विजली
पाकर वल्व जलाओ।
दूर
गाँव जब चलता
चरखा,
विजली
पा सबका मन हरखा।
खादी
को घर-घर पहुँचाओ,
बुनकर
के कर सबल बनाओ।
घर-घर
जब होगी खुशहाली,
तभी
मनेगी सही दिवाली।
चलो,
चलें खादी अपनाएं,
खादी
के प्रति प्रेम जगाएं।
मन
में गांधी, तन पर खादी,
तब
समझो पाई आजादी।
मेरे
*मन की बात* सुनो तुम,
बापू
की सौगात सुनो तुम।
बापू
को चरखा था
प्यारा,
और स्वच्छता उनका नारा।
...आनन्द विश्वास
Thursday, 24 September 2015
बुर्के वाली अम्मीज़ान
बुर्के
वाली अम्मीज़ान
यह
कहानी मेरे बाल-उपन्यास
*बहादुर
बेटी*
से
ली गई है।
यह पुस्तक Amazon.com. और Flipkart.com.
पर भी उपलब्ध है।
...आनन्द
विश्वास
सुबह होते ही आरती ने अपने पास में
अदृश्य रूप में स्थित ऐनी ऐंजल को एक्टीवेट करके, अपनी समस्या को उसके साथ शेयर
किया और फिर उसके निराकरण करने का सुझाव माँगा। साथ ही आरती ने बाहर निकलकर वहाँ
के आस-पास के स्थानों का निरिक्षण करने के विषय में भी जानना चाहा।
एक्टीवेटेड ऐंजल ऐनी ने आरती को
अपना सुझाव देते हुए कहा-“आरती, तुम अपने पास में रखे हुए
चमत्कारी चाँदी के सिक्के को एक्टीवेट करके उसके हरे बटन को दबाकर नीटा-रेज़ वाली
पिस्टल की व्यवस्था कर लो। इस पिस्टल में बेहोश करने की गोली के साथ-साथ बेहोश
करने के परफ्यूम-स्प्रे की भी व्यवस्था होती है। इस परफ्यूम-स्प्रे में मनुष्य को
आठ-दस घण्टे तक बेहोश कर देने की क्षमता होती है। इसके उपयोग से तुम आसानी से
आठ-दस घण्टे के लिए बाहर घूमकर आ सकती हो।”
“ठीक है ऐनी, पर इस
बीच यहाँ पर होने वाली हर पल की जानकारी तुम मुझे देते रहना।” आरती ने ऐनी ऐंजल से कहा।
“ठीक है, जैसा तुम उचित समझो,
आरती।” ऐनी ऐंजल ने आरती से कहा।
और कुछ ही समय में आरती ने
नीटा-रेज़ वाली पिस्टल की व्यवस्था करके ऐनी ऐंजल से कहा-“ठीक है ऐनी, मैं शीघ्र ही वापस आऊँगी, तुम यहाँ की गतिविधियों का ध्यान
रखना और साथ ही मेरे सम्पर्क में बने रहना। इस बीच बाहर से यदि कोई व्यक्ति अन्दर
आए तो उसकी सूचना तुम मुझे तुरन्त ही दे देना।”
“इस विषय में भी आरती तुम्हें
बिलकुल भी चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं है। बाहर से जैसे ही कोई व्यक्ति इस
वातावरण में प्रवेश करेगा, वह तुरन्त ही बेहोश हो जाएगा।” ऐनी
ऐंजल ने आरती को परफ्यूम-स्प्रे की विशेषता बताते हुए कहा।
“तब ठीक है ऐनी, फिर तो मुझे कोई
चिन्ता नहीं है।” ऐसा कहकर आरती ने बाहर जाने का मन बनाया।
इसके बाद आरती ने *नीटा-रेज़* वाली
पिस्टल से कैदखाने में सभी जगह परफ्यूम का स्प्रे कर दिया और देखते ही देखते
अण्डर-ग्राउण्ड कैदखाने में जितने भी चौकीदार और अन्य बन्दूक-धारी गार्डस् थे, वे
सब के सब बेहोश हो गये। अब आरती को बाहर जाने में कोई भी रुकावट या परेशानी नही
थी। अतः वह कैद खाने से बाहर निकलकर मेन रोड से होती हुई बाज़ार में आ गई।
बाज़ार का नज़ारा बड़ा ही
विचित्र-सा लगा, आरती को। यहाँ पर न तो कोई भीड़-भाड़ ही थी और ना ही कोई विशेष
चहल-पहल ही। गरीबी ही गरीबी पसरी पड़ी थी, इधर-उधर और सभी तरफ। मिट्टी के बने हुए
कच्चे मकान अधिक थे और पक्के ईंट-पत्थरों या सीमेंट के बने मकान तो बस
इक्का-दुक्का ही नज़र आ रहे थे। गन्दगी का साम्राज्य था हर तरफ।
सड़क पर और दुकानों पर पुरुष ही
पुरुष नज़र आ रहे थे और स्त्रियाँ तो दूर-दूर तक कहीं भी दिखाई नहीं दे रहीं थीं।
आरती के मन में रह-रह कर यही प्रश्न उठ रहा था कि क्या यहाँ पर केवल पुरुष ही रहते
हैं। यदि स्त्रियाँ भी रहती हैं तो फिर वे दिखाई क्यों नहीं दे रहीं हैं।
आरती बाजार में थोड़ा ही आगे बढ़
पाई थी कि तभी किसी ने पीछे से पुकारा-“ऐ लड़की, तू यहाँ
बाजार में इस तरह से क्यों घूम रही है। क्या तुझे अपनी जान की जरा भी चिन्ता नहीं
है।” और यह आवाज थी एक बुजुर्ग महिला की, जो कि मटमैले रंग
का बुर्का पहने हुए थी। और बड़ी तीब्र गति से आरती की ओर बढ़ी चली आ रही थी। शायद
उसने आरती को अपने घर के अन्दर से ही देख लिया होगा और फिर वह उसकी जान को बचाने
के मकसद से, उसे सावधान करने के लिए चली आई थी।
“क्यों, क्या हुआ, क्या यहाँ पर
लड़कियों के घूमने-फिरने पर पाबन्दी है।” आरती ने उस बुर्के
वाली बुजुर्ग महिला से पूछा।
“हाँ, क्या तुझे मालूम नहीं है कि
इस घाटी में लड़कियों का इस तरह से घर से बाहर निकलना या घूमना-फिरना बिलकुल भी
खतरे से खाली नहीं है और यदि कोई विशेष मजबूरी हो और घर से बाहर निकलना ही पड़े तो
बुर्का पहनना जरूरी है।” उस बुजुर्ग महिला ने आरती को खतरे
से सावधान करते हुए कहा।
“क्यों, ऐसा क्यों है अम्मीज़ान।
लड़कियाँ अपने घर से बाहर क्यों नहीं निकल सकतीं।” आरती ने
आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा।
“तूने मुझे अम्मीज़ान कहा है
बेटी। तो पहले तो तू जल्दी से घर के अन्दर चल। बाद में मैं तुझे सब कुछ बता दूँगी।
अगर इस हालत में खलीफा ने या खलीफा के किसी आदमी ने हमें यहाँ पर देख लिया तो बहुत
बड़ी मुसीबत आन पड़ेगी। हम सबकी जान जोखिम में पड़ जाएगी।” बुर्के
वाली बुजुर्ग महिला ने डरते हुए आरती से कहा।
“अम्मीज़ान, इसमें डरने की क्या
बात है। हम भी तो आखिर इन्सान हैं, हम सब भी तो खुदा के बन्दे हैं और घूमने-फिरने
की आजादी तो हम सबको भी है। तो फिर डरना कैसा और किससे।”
आरती ने अपना तर्क दिया।
“तुझे मालूम नहीं है बेटी, खलीफा
को या उसके किसी आदमी को पता चल गया तो वह तुझे भी गोली से उड़ा देगा। मैं अपनी
बड़ी बेटी को गँवा चुकी हूँ, बेटी। इसी खलीफा ने उसके शरीर को गोलियों से
छलनी-छलनी कर दिया था, बीच बाज़ार में। बस, तेरे ही बराबर की थी, मेरी बेटी।” ऐसा कहते-कहते उसकी आँखों से आँसू छलक पड़े और गला रुँद गया।
“क्यों, ऐसा क्या कुछ हुआ
अम्मीज़ान, जो खलीफा ने आपकी बेटी को जान से मार डाला।” आरती
ने आतुरता के साथ पूछा।
“बेटी, मेरी बेटी आलिया बहुत
होशियार थी। उसका दिमाग बहुत तेज चलता था, उसे पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था और वह
पढ़-लिखकर बहुत बड़ा अफसर बनना चाहती थी। एक दिन वह मदरसे में यह देखने के लिए चली
गई कि कैसी होती है पढ़ाई और कैसे पढ़ते हैं बच्चे। बस मौलवी साहब को आलिया की यह
बात बड़ी नागँवार गुजरी। उन्होंने उसको पकड़कर वहीं पर बैठा लिया और तुरन्त ही
खलीफा को खबर कर दी। खलीफा मेरी बेटी को बीच बाजार में खींच कर ले आया और फिर भरे
बाजार में सब के सामने उसके शरीर को गोलियों से छलनी-छलनी कर दिया। और ऐसी दहशत
पैदा कर दी कि कभी कोई दूसरी लड़की भूलकर भी पढ़ने-लिखने के बारे में सोच भी न सके
और ना ही कभी कोई लड़की मदरसे की ओर मुँह भी कर सके।” और ऐसा
कहते-कहते तो अम्मीज़ान फूट-फूटकर रोने लगी।
“आस-पास के लोगों ने और बाजार
वाले लोगों ने इस सबका कोई विरोध नहीं किया, अम्मीज़ान। और क्या कोई कुछ भी नहीं
बोला उस खलीफा के विरोध में।” आश्चर्य-चकित होकर आरती ने
अम्मीज़ान से पूछा।
“सब डरते हैं, बेटी उससे। सबको
अपनी जान प्यारी है। कोई भी बचाने नहीं आया और ना ही किसी ने कोई विरोध ही किया।
दिनभर मेरी बेटी की लाश सड़क पर ही पड़ी रही, मदद के लिए कोई भी नहीं आया सामने।” दुपट्टे के पल्लू से आँसू पौंछते-पौंछते अम्मीज़ान सुबक-सुबक कर रोने
लगीं।
अम्मीज़ान को सांत्वना देते हुए
आरती ने पूछा-“क्या यहाँ पर लड़कियों को मदरसे या स्कूल में पढ़ने-लिखने के लिए जाने
नहीं दिया जाता है, अम्मीज़ान।”
दुपट्टे के आँचल में अपने आँसुओं को
समेंटते हुए अम्मीज़ान ने आरती को बताया-“हाँ बेटी, इस
देश में लड़कियों को कलम और किताब से दूर ही रखा जाता है। मदरसे और स्कूलों में तो
केवल लड़कों को ही पढ़ाया जाता हैं। लड़कियों को तो वहाँ पर पढ़ने की तो बात बहुत
दूर की है वहाँ पर प्रवेश की भी इज़ाजत नहीं है।”
“ये कैसा कानून है, अम्मीज़ान।
पढ़ाई पर तो सबका बराबर का अधिकार है। लड़के और लड़कियाँ जब दोनों ही पढ़ेंगे तभी
तो देश और समाज की तरक्की हो सकेगी और हम सब लोग आगे बढ़ सकेंगे। अगर समाज में
केवल लड़के ही पढ़ेंगे तब तो देश और समाज की आधी तरक्की ही हो सकेगी। अगर हमें
सम्पूर्ण समाज की तरक्की करनी है तो लड़के और लड़कियों दोनों को ही पढ़ाना होगा।” आरती ने अपना तर्क प्रस्तुत किया।
“ये बात तो सब लोग जानते भी हैं
और सब लोग समझते भी हैं, बेटी। पर खलीफा के तुगलकी फरमान और फतवा के आगे सब लोगों
को डर लगता है। सभी को अपनी जान प्यारी है और इसीलिए कोई भी इसका विरोध करने का
साहस नहीं कर पाता है।” अम्मीज़ान ने लोगों की मजबूरी का
हवाला देते हुए कहा।
“पर अम्मीज़ान, यहाँ के सभी लोगों
की खुद की क्या राय है। वे लोग अपने घर की लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना चाहते भी हैं
या नहीं।” आरती ने अम्मीज़ान से आम राय जानना चाहा।
“ज्यादातर लोग तो अपने लड़के और
लड़कियों, दोनों को ही पढ़ाना-लिखाना चाहते हैं और अच्छा अफसर बनाना चाहते हैं।
शान्ती की जिन्दगी सबको पसन्द है सब अपनी मेहनत से तरक्की करना चाहते हैं। पर
आतंकवादी आकाओं और खलीफा के फतवा और फरमान के कारण वे अपने घर की लड़कियों को
स्कूल और मदरसे में पढ़ने नहीं भेज पाते हैं।” अम्मीज़ान ने
बताया।
“अम्मीज़ान, ये खलीफा देखने में
कैसा लगता है और क्या मैं इस खलीफा से मिल सकती हूँ। मैं उससे पूछूँ तो सही कि
आखिर वह ऐसा क्यों करता है।” आरती ने अपनी इच्छा प्रकट की।
“न बेटी न, ऐसी गलती तू कभी भूलकर भी मत करना। वह तो बहुत बड़ा जल्लाद है।
तुझे देखते ही गोली मार देगा वह।” भय के मारे काँप ही गईं थी
अम्मीज़ान।
“पर अम्मीज़ान, अगर वह मेरे सामने
आ भी गया तो मैं तो उसे पहचान ही न सकूँगी।” आरती ने अपनी
विवशता बताई।
“ठहर, मेरे पास में उसका एक
छोटा-सा फोटो पड़ा हुआ है। मैं उस फोटो को तुझे दिखाती हूँ। उसकी शक्ल को देखते ही
तुझे तुरन्त ख्याल आ जाएगा बेटी, कि वह जल्लाद कितना जहरीला इन्सान है।” कहते हुए अम्मीज़ान ने कौने में रखे हुए अपने बाबा आदम के जमाने के
पुराने सन्दूक का ताला खोला और फिर उसमें से फोटो को निकाल कर आरती को
दिखाया।
बढ़ी हुई लम्बी दाढ़ी, बड़ी-बड़ी
मूँछें, बिखरे हुए बाल और डरावना चेहरा, देखने से तो जल्लाद ही दिखाई दे रहा था वह
खलीफा। दया और रहम जैसे शब्द तो उससे कोसों दूर ही होंगे।
“क्या मैं इस फोटो को अपने पास रख
सकती हूँ, अम्मीज़ान।” आरती ने अम्मीज़ान से पूछा।
“हाँ बेटी, अब तो ये फोटो तू ही
अपने पास में रख ले। शायद तेरे ही कुछ काम आ जाए, ये फोटो। और वैसे भी ये फोटो तो
मेरे लिए अब किस काम का है। पर, ये ही तो है मेरी बेटी आलिया का हत्यारा और मेरा
जानी दुश्मन। इसके खून को पीकर ही मुझे चैन पड़ेगा, बेटी।”
जल्लाद खलीफा के फोटो को आरती के हाथों में थमाते हुए अम्मीज़ान की आँखों से आँसू
ढुलक पड़े। उनके मन की पीढ़ा और आक्रोश चहरे पर स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे
थे।
काफी देर हो चुकी थी आरती को और उसे अपने कैदखाने की हर परिस्थिति का ख्याल
आ रहा था। अतः उसने अम्मीज़ान से विदा लेते हुए कहा-“अम्मीज़ान, अभी तो मैं चलती हूँ लेकिन बहुत ही जल्दी मैं आपसे मिलने जरूर
आऊँगी।”
“हाँ बेटी, जब कभी तुझे
थोड़ा-बहुत टाइम मिले तो मिलने के लिए जरूर ही चली आना। तुझसे मिलकर बेटी मेरे दिल
को बड़ा ही सकून मिलता है।” कहते-कहते अम्मीज़ान की आँखें भर
आईं।
“अम्मीज़ान, आप मेरी जरा भी फ़िकर
मत करो। आपकी बेटी आलिया की शहादत यूँ ही बेकार नहीं जाएगी। मेरा मन कहता है
अम्मीज़ान, एक न एक दिन खलीफा को उसके किए की सज़ा तो जरूर ही मिलेगी। उस ऊपर वाले
अल्लाहताला के दर पर देर है पर अँधेर नहीं।” आरती ने
अम्मीज़ान को भरोसा दिलाया।
“बेटी, शायद तेरी ही इबादत कबूल
कर ले अल्लाहताला, वैसे मेरी आँखें तो कब से तरस रहीं हैं उसके इन्साफ के इन्तज़ार
में। पर अल्लाहताला तो जाने कहाँ गहरी नींद में सोया हुआ है, मेरी तो कुछ भी सुनता
ही नहीं।” दुःखी मन से अम्मीज़ान ने कहा।
“नहीं अम्मीज़ान, आप उस ऊपर वाले
पर भरोसा रखो। आपको इन्साफ जरूर मिलेगा। अच्छा, अम्मीज़ान अब मुझे जाना होगा, काफी
देर हो चुकी है।” आरती ने अम्मीज़ान से कहा।
“पर बेटी तू अकेली कैसे जा पाएगी
अपने घर तक। चल मैं ही तुझे पहुँचा देती हूँ। लेकिन बेटी, बाहर निकलने से पहले तू
ये बुर्का तो पहन ले और तभी तू घर से बाहर निकलना।” अपनी
छोटी बेटी के नये बुर्के को अपने पुराने टूटे हुए सन्दूक में से निकालकर आरती को
देते हुए अम्मीज़ान ने हठ पूर्वक कहा।
“नहीं अम्मीज़ान, आप मेरी चिन्ता
तो बिलकुल भी मत करो। मेरा कोई भी कुछ भी तो नहीं बिगाड़ सकता है। मुझे इस बुर्के
की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और फिर आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ जो हैं मेरे
साथ, अम्मीज़ान।” आरती ने अम्मीज़ान को आश्वासन देते हुए
कहा।
पर अम्मीज़ान जानती थी खलीफा की
शक्ति को और उसके दुराचारी आचरण को। छोटी-सी नन्हीं कोमल जान, एक अदना लड़की कैसे
मुकावला कर पाएगी उस दुष्ट राक्षस का।
वह निश्चय कर चुकी थी कि बिना
बुर्का पहने हुए तो वह किसी भी हालत में उसे घर से बाहर नहीं ही निकलने देगी। चाहे
कुछ भी क्यों न हो जाए। अम्मीज़ान की स्नेह-मयी ममता और हठ के आगे आरती का हर
ब्रह्मास्त्र बौना पड़ गया।
आरती ने अनुभव किया कि अम्मीज़ान
खलीफा के भय से बहुत अधिक भयभीत हैं और वे किसी भी हालत में वगैर बुर्का पहने घर
से बाहर नहीं निकलनें देंगी। अतः आरती ने अम्मीज़ान का मन रखने के लिए, उनके आदेश
का पालन करते हुए बुर्के को पहन कर ही घर से बाहर निकलना उचित समझा।
घर से निकलकर कुछ दूर तक तो आरती ने
बुर्का पहने रखा और फिर उतारकर अपने पास में ही रख लिया। और फिर बिना बुर्का पहने
ही चल पड़ी अपने रास्ते पर।
आखिरकार आरती भी तो देखना चाहती थी
कि कौन है ऐसा दुष्ट खलीफा जिसने यहाँ पर अपने आतंक से भोलीभाली जनता को इतना
आतंकित कर रखा है और अत्याचार फैला रखा है।
अब उसने अपना मन बना लिया था कि यदि
उसे आज वह खलीफा मिल जाय तो वह उसे मजा चखाकर ही रहेगी। तड़पा-तड़पा कर मारेगी उसे
और फिर बेदम करके भयभीत अम्मीज़ान के कदमों में ले जाकर डाल देगी उसे। और फिर
अम्मीज़ान से कह देगी कि ये लो अम्मीज़ान, ये है आपकी बेटी का जालिम हत्यारा, आपके
कदमों में। और पी लो इसका सारा खून, जितना चाहो उतना। बहुत पिया है इसने बहुतों का
खून। मारो इस आतातायी अत्याचारी जल्लाद को, और जी भरकर मारो। तरसा-तरसा कर मारो,
इन्सानियत के इस कलंक को।
पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और इससे
पहले ही वह पहुँच चुकी थी अपने अण्डर-ग्राउण्ड कैद खाने तक। सब कुछ सामान्य था।
सभी चौकीदार और बन्दूक-धारी गार्डस् अभी भी बेहोश ही पड़े हुए थे। ऐंजल ऐनी ने
आरती को बताया कि इस बीच में यहाँ पर कोई भी नहीं आया था।
यह जानकर आरती ने चैन की सांस ली।
***
...आनन्द विश्वास
Monday, 21 September 2015
शक्ति-स्वरूपा बेटी हो
शक्ति-स्वरूपा बेटी हो
...आनन्द विश्वास
परी-लोक में मत भरमाओ,
आज देश के
बचपन
को।
परी-लोक
सा देश बनाकर,
दे दो
नन्हें बचपन को।
क्यों
कहते हो स्वर्ग-लोक में,
निर्मल गंगा
बहती है।
गंगा
को निर्मल कर कह दो,
ऐसी गंगा
होती है।
बेटा-बेटा
कह बेटी को,
मत भरमाओ बेटी को,
उसको
उसका हक दे, कह दो
तुम
शक्ति-स्वरूपा बेटी हो।
ये करना है,
वो कर देंगे,
मत
भरमाओ जन-जन को।
जो
करना है कर दिखलाओ,
आज देश
के जन-गण को।
...आनन्द
विश्वास
Sunday, 20 September 2015
"बहादुर बेटी का अभियान गीत"
नानी
वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।
बेटी-युग
के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग में
बेटा-बेटी,
सभी पढ़ेंगे,
सभी बढ़ेंगे।
फौलादी ले
नेक इरादे,
खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।
देश पढ़ेगा, देश
बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।
बेटी-युग
के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटा शिक्षित, आधी
शिक्षा,
बेटी शिक्षित
पूरी शिक्षा।
हमने सोचा, मनन करो तुम,
सोचो समझो करो समीक्षा।
सारा जग शिक्षामय करना ,हमने
सोचा मन में ठानी।
बेटी-युग
के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
अब कोई ना अनपढ़ होगा,
सबके हाथों पुस्तक होगी।
ज्ञान-गंग की पावन धारा,
सबके आँगन तक पहुँचेगी।
पुस्तक और पैन की
शक्ति,जगजाहिर जानी पहचानी।
बेटी-युग
के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।
बेटी-युग सम्मान-पर्व
है,
ज्ञान-पर्व है,
दान-पर्व है।
सब सबका सम्मान करे तो,
जीवन का
उत्थान-पर्व है।
सोने की चिड़िया बोली है,
बेटी-युग की हवा सुहानी।
बेटी-युग
के नए दौर की,आओ लिख लें नई कहानी।
Friday, 18 September 2015
बचपन बचाओ
बचपन
बचाओ
यह
कहानी मेरे बाल-उपन्यास
*बहादुर
बेटी*
से
ली गई है।
यह
पुस्तक अब Flipkart.com
पर भी उपलब्ध है।
...आनन्द
विश्वास
और दूसरे दिन से ही सभी बच्चे
अपने-अपने निर्धारित कार्यों में बड़ी ही मुस्तैदी के साथ जुट गए। बालकों का
उत्साह तो देखते ही बनता था। उत्साहित बच्चों से भी अधिक उत्साहित तो अपने घोष
बाबू दिखाई दे रहे थे। बचपन और पचपन का अनौखा संगम था, बुद्धि और शक्ति का अनौखा
मनुहारी संगम।
आज सशक्त युवा हाथों को मिल गया था
एक सही मार्ग-दर्शन और एक सही दिशा। और सच तो यह है कि किसी भी कार्य की सफलता के
लिए, बस इतना ही काफी होता है। बाकी सब कुछ तो सशक्त युवा हाथ अपने आप ही कर लेते
हैं।
घोष बाबू के विशाल बंगले के
रोड-साइड के दोनों कमरों की साफ-सफाई करके उसे *बचपन-फॉउन्डेशन* के कार्यालय का
रूप दे दिया गया था। टेबल, कुर्सी, फोन, फर्नीचर और स्टेशनरी आदि सभी आवश्यक
वस्तुओं की व्यवस्था हो चुकी थी।
घोष बाबू ने *शिकारी
शो-ऑर्गेनाइज़र्स* के डायरेक्टर विक्रम शिकारी को ऑफिस में बुलाकर रॉनली, आरती,
मानसी, शर्लिन, शाल्विया और भास्कर से परिचय करवाया और फिर अपने चैरिटी-शो के
उद्देश्य के विषय में पूरी जानकारी देकर अपनी सभी परिस्थितियों से अवगत करवाया।
इसी समय चैरिटी-शो के लिए ऑडीटोरियम और समय सब कुछ निश्चित कर दिया गया। सभी की
राय थी कि यदि दर्शकों की अनुकूलता को ध्यान में रखा जाय तो शनिवार का दिन सबसे
अधिक उपयुक्त रहेगा।
शो-ऑर्गेनाइज़र डायरेक्टर विक्रम
शिकारी को जब यह पता चला कि छोटे-छोटे बच्चे ही स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब
बच्चों के वैलफेयर के लिए *बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में इस चैरिटी-शो का
आयोजन कर रहे हैं तो उन्होंने मिनीमम खर्च और नो-प्रोफिट नो-लॉस के बेसिस पर
चैरिटी-शो के आयोजन कराने का मन बना लिया। साथ ही उन्होंने बच्चों की सोच की और उनके द्वारा उठाए गए इस साहसिक कदम की
सराहना भी की। उनका कहना था कि ऐसा शो जिन्दगी में, मैं पहली बार कर रहा हूँ।
दूसरे दिन सभी समाचारपत्रों, मीडिया
और स्थानीय चेनल्स पर चैरिटी-शो के विज्ञापन दे दिये गए। चैरिटी-शो के आयोजक के
रूप में आरती का नाम और फोटो भी छापा गया।
पर आरती का नाम और फोटो समाचारपत्र
और टीवी चैनल्स पर आते ही पुलिस, सरकार और मीडिया के सभी लोग तो हक्का-वक्का ही रह
गए। क्योंकि जिस आरती नाम की साहसिक बालिका की तलाश में सरकार की स्पेशल
इन्वेस्टीगेटिंग टीम ने और अनेक इन्टेलीजेंस एजेंसियों ने देश-विदेश का कोना-कोना
छान मारा था, उसी बालिका का पता और ठिकाना आज उन्हें घर बैठे ही समाचारपत्रों और
टेलीविज़न चेनल्स पर अपने आप मिल गया।
सब के सब दौड़ते हो गये थे
*बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस की ओर और आरती के घर की ओर। और इतना ही नहीं, पीएमओ से
लेकर स्थानीय पुलिस थाने तक की सभी सरकारी गाड़ियों का तो एक बहुत बड़ा काफिला ही
दौड़ता हो गया था।
क्योंकि यही तो वह साहसी बालिका
आरती थी जिसने अपनी जान की चिन्ता न करते हुए, अपनी जान को जोखिम में डालकर, अभी
कुछ समय पहले ही, प्रधानमंत्री और उनके ड्रीमलाइनर विमान को तीन-तीन हाईजैकर
आतंकवादियों के चंगुल से बड़ी ही कुशलता के साथ मुक्त कराया था।
इतना ही नहीं, विमानन मंत्रालय और
एयरपोर्ट अथोर्टीज़ तो आज भी प्रश्नों के घेरे में है। पीएम की सुरक्षा में इतनी
बड़ी चूक कैसे हो गई कि तीन-तीन आतंकवादी हाईजैकर्स इतनी बड़ी मात्रा में
विस्फोटक, एके 47 राइफल्स और हैन्ड-ग्रेनेड आदि अपने साथ में लेकर ड्रीमलाइनर
विमान में घुसने में कैसे सफल हो गए। और आरती का तो आजतक भी वे पता नहीं चला सके
थे।
कुछ ही समय के अन्दर आईजी रेंक के
दो पुलिस ऑफीसर्स ने आरती से सम्पर्क करके बताया कि अभी कुछ दिन पहले ही आपने जिन
तीन आतंकवादियों को ड्रीमलाइनर विमान में से पकड़वाने में हमारी जो सहायता की थी,
उसके सहयोग के लिए हम सब आपके आभारी हैं। साथ ही हमने उन तीनों आतंकवादियों पर
सरकार की ओर से एक-एक करोड़ का इनाम भी रखा हुआ था। प्रथम तो हम लोग एक
विशेष-समारोह का आयोजन करके उन पुरस्कारों की राशि के चेक, शाल और प्रशस्ति-पत्र
आपको भेंट करके आपका स्वागत-सम्मान करना चाहते हैं।
दूसरा यह कि, पीएम भी ड्रीमलाइनर
विमान की उस घटना के संदर्भ में आपसे मिलना चाहते हैं। पीएम के कार्यालय से हमें
अभी-अभी ही यह सूचना मिली है। आरती ने दोनों ही कार्यक्रमों के लिए उनकी अनुकूलता
के अनुसार ही दिन और समय निश्चित करने के लिए स्वीकृति दे दी और साथ में यह भी बता
दिया कि वे इन कार्यक्रमों को शनिवार के दिन न रखें क्योंकि शनिवार के दिन तो उसका
खुद का ही *बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में एक चैरिटी-शो का आयोजन है।
शाम को ही पुलिस ऑफीसर्स की ओर से
सूचना मिली कि हम लोग अपना कार्यक्रम कल सुबह का रख रहे हैं और प्रधानमंत्री से
आपके मिलने का कार्यक्रम कल शाम के समय रखा गया है। यह सूचना हम आपको पीएम ऑफिस से
समय का कनफर्मेशन करने के बाद ही दे रहे है। आपको लेने के लिए हम खुद ही आऐंगे।
इधर यह समाचार मिलते ही आरती के
*बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस में तो खुशी की लहर ही दौड़ गई। अब तो सभी बच्चों का
उत्साह और काम करने का हौसला और दुगना हो गया था। क्योंकि अब उन्हें लगने लगा था
कि पैसे की समस्या अब उनके काम में रुकावट नहीं बनेगी।
दूसरे दिन समय से पहले ही पुलिस
ऑफीसर्स आरती को लेने के लिए घर पर आ पहुँचे थे। अपने सम्मान-समारोह में शामिल
होने के लिए आरती ने घोष बाबू और मानसी को भी अपने साथ ले जाना उचित समझा। आरती के
सम्मान समारोह का कार्यक्रम सेन्ट्रल ऑडीटोरियम में रखा गया था। शहर के अनेक
सम्मानित व्यक्ति, उद्योगपति, साहित्यकार, बुद्धिजीवी-वर्ग, राज-नेता और पुलिस
अधिकारियों से खचाखच भर गया था सोलह हजार सीटों की कैपेसिटी वाला यह सेन्ट्रल
ऑडीटोरियम।
सेन्ट्रल ऑडीटोरियम पर प्रिन्ट और
इलेक्ट्रोनिक मीडिया का जमावड़ा तो देखते ही बनता था और यह तो होना स्वाभाविक भी
था। समारोह ही कुछ ऐसा था। बहादुरी का पुरस्कार और वह भी छोटी-सी बालिका को। उसके
अदम्य साहस और वीरता का परिचय, खूँख्वार आतंकवादियों से दो-दो हाथ करने का साहस।
और तीनों आतंकवादियों को सरकार के हवाले कर देने का साहस और वह भी जिन्दा। जिनके
लिए सरकार ने जिन्दा या मुर्दा सौंपने पर एक-एक करोड़ का ईनाम घोषित किया हो।
महिला एवं बाल-विकास मंत्री श्रीमती
श्रद्धा सुमन ने अपने हाथों से आरती को शाल उड़ाकर स्वागत-सम्मान किया और फिर तीन
करोड़ रुपए की धन-राशि के चेक और प्रशस्ति-पत्र सीनियर पुलिस ऑफीसर आईजी
एस.के.भार्गव के हाथों से प्रदान किया गया। तालियों की गड़गड़ाहट और आरती...
आरती... आरती... के शब्दों के जोरदार शोर से सारा का सारा हॉल ही गूँज उठा था।
फोटो और कैमरों की फ्लैश-लाइट इधर-उधर सारे हॉल में काफी देर तक चमकतीं रहीं।
अपने संक्षिप्त अध्यक्षीय भाषण में
महिला एवं बाल-विकास मंत्री श्रीमती श्रद्धा सुमन ने कहा कि आरती जैसी बहादुर
बेटियों के ऊपर आज सारे देश को नाज़ है और बहादुर बेटी आरती ने आज वह काम करके
दिखाया है जिससे हमारा मस्तक गर्व से ऊँचा उठ जाता है। जिसने अपनी जान की चिन्ता न
करते हुए, अपनी जान को जोखिम में डालकर तीनों आतंकवादियों को ढ़ेर कर, सरकार के
हवाले कर दिया। यह पुरस्कार अपने आप में ही उसके साहस और शौर्य का प्रतीक है। आरती
आज के युवा-वर्ग और देशवासियों के लिए प्रेरणा-पुंज और अनुकरणीय है।
और जब अतिथि विशेष, महिला एवं
बाल-विकास मंत्री श्रीमती श्रद्धा सुमन ने स्टेज से घोषणा करके यह बताया कि आरती
अपने पुरस्कार की इस राशि को गरीब और स्लम-एरिया में रहने वाले बच्चों के वैलफेयर
के लिए *बचपन-फॉउन्डेशन* नाम की सामाजिक संस्था को डोनेट करना चाहतीं हैं तब तो इस
धोषणा के होते ही पूरा हॉल एक बार फिर से तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट और आरती...
आरती... आरती... आदि के नारों से काफी देर तक गूँजता रहा। इतनी बड़ी राशि का
डोनेशन निश्चय ही प्रेरणा-पूर्ण साहसिक कदम ही कहा जा सकता है।
दो मिनट के अपने संक्षिप्त वक्तव्य में आरती ने
समारोह में उपस्थित सभी आगन्तुक महानुभावों और आयोजन कर्ताओं को हृदय से धन्यवाद
देते हुए बड़ी ही विनम्रता के साथ कहा-“मैं भी तो आप जैसी
ही एक सामान्य नागरिक हूँ और मैंने जो कुछ भी किया है वह तो हर किसी नागरिक को
करना ही चाहिए था। और मुझे इस बात की प्रसन्नता है कि मुसीबत की खौफनाक घड़ी में
भी मैं अपने कर्तव्य का पालन पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी के साथ पूरा करने का साहस
जुटा सकी। एक बार फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद।”
आरती का वक्तव्य पूरा होने के साथ
ही पूरा हॉल एक बार फिर से तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट से काफी देर तक गूँजता
रहा।
समारोह समाप्त होने के बाद मीडिया
की ओर से एक छोटी सी प्रेस-कॉन्फ्रेंस का भी आयोजन किया गया था। पीसी में आरती को
पीएम और आतंकवाद से सम्बन्धित प्रश्नों की धुआँधार बौछार का सामना तो नहीं करना
पड़ा, पर हाँ, चैरिटी-शो के आयोजन और उसके उद्देश्य को लेकर मीडिया ने अनेक प्रश्न
पूछे।
मसलन एक पत्रकार ने आरती से पूछा-“*बचपन-फॉउन्डेशन* के तत्वावधान में हो रहे चैरिटी-शो के आयोजन करने के
पीछे आपका उद्देश्य क्या है।”
“चैरिटी-शो
के माध्यम से हम एक बहुत बड़ा फण्ड एकत्रित करना चाहते हैं जिसका उपयोग गरीब
बच्चों के वैलफेयर के लिए किया जा सके। गरीब और स्लम-एरिया में रहने वाले बच्चों
की फ्री-एज्यूकेशन के साथ-साथ हम लोग नारी-शिक्षा और नारी-सुरक्षा पर भी काम करना
चाहते हैं।” आरती ने उत्तर दिया।
“ऐसे कौन-कौन से काम होंगे
जिन्हें आप अपनी प्राथमिकता के आधार पर निर्धारित करेंगे।” एक
न्यूज रिपोर्टर ने पूछा।
आरती ने बताया-“प्राथमिकता के आधार पर हम सबसे पहले तो ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाना
चाहते हैं जहाँ पर कि स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के रहने के लिए
हॉस्टिल, खाने-पीने और पढ़ाई आदि की व्यवस्था निःशुल्क हो सके।”
“ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाने
में तो आपको काफी धन की आवश्यकता होगी और इतना धन आप कैसे जुटा सकेंगे।” रिपोर्टर ने प्रश्न किया।
“हमारे पास बाल-शक्ति की अपार
सम्पदा है और घोष बाबू जैसे कुशल और अनुभवी व्यक्तियों का सही मार्ग-दर्शन भी। हम
अपने उद्देश्य में निश्चय ही सफलता प्राप्त करेंगे। इसमें हमें तनिक भी सन्देह
नहीं है।” आरती ने पूर्ण आत्म-विश्वास के साथ कहा।
“क्या इस चैरिटी-शो से आपको इतनी
धन-राशि मिल सकेगी जिससे कि आप अपने मिशन के सभी कामों को पूरा कर सकेंगे।” एक रिपोर्टर ने जानना चाहा।
“नहीं, हमें इस तरह के चैरिटी-शो
हर महिने और जगह-जगह पर करने होंगे। इसके साथ-साथ अन्य सेवाभावी संस्थाओं और अनेक
उद्योगपतियों से भी आर्थिक सहायता लेनी होगी। हमें अन्य सेवाभावी संस्थाऐं तभी
सहयोग करेंगी जब उन्हें हमारी संस्था *बचपन-फॉउन्डेशन* के द्वारा किए गए कार्यों
के प्रति उनके मन में विश्वास उत्पन्न होगा। हमें अपने कार्यों से उनका दिल जीतना
होगा।” आरती ने रिपोर्टर को विश्वास दिलाते हुए कहा।
सभी मीडिया-कर्मिओं और
प्रेस-रिपोर्टरस् को सन्तोष-जनक उत्तर देने के बाद आरती ने पीसी को समाप्त करते
हुए एक बार फिर से वहाँ पर उपस्थित सभी सज्जनों को धन्यवाद दिया और फिर अपने
*बचपन-फॉउन्डेशन* के ऑफिस की ओर प्रस्थान किया। क्योंकि आज शाम को भी तो उसका पीएम
से मिलने का कार्यक्रम भी था।
पीएम से मिलने के कार्यक्रम को लेकर
आरती के मन में काफी उत्साह था और यह उत्साह और भी अधिक इसलिए हो गया था क्योंकि
पीएम ने उसे मिलने के लिए सामने से बुलाया था, एक विशिष्ट व्यक्ति के रूप में, एक
विशिष्ट अतिथि के रूप में।
शाम को भी समय से पहले ही पुलिस
ऑफीसर्स आरती को लेने के लिए घर पर आ पहुँचे थे। पर अब उनकी गाड़ी की दिशा
सेन्ट्रल ऑडीटोरियम की ओर नहीं, पीएम हाउस की ओर थीं और उनके साथ में था पीएम
सीक्योरिटी का स्टाफ भी।
सभी फॉर्मलिटीज़ पूरी होने के बाद,
आरती थी पीएम श्री के विशिष्ट अतिथि-कक्ष में, एक विशिष्ट अतिथि के रूप में। जिससे
मिलकर पीएम स्वयं ही धन्यवाद देने चाहते थे क्योंकि उस दिन ड्रीमलाइनर विमान में
अगर वह न होती तो शायद आज पीएम या तो आतंकवादियों के कब्जे में होते या फिर कुछ भी
हो सकता था उनका और उनके साथ जा रहे उनके प्रतिनिधि मण्डल का।
अतिथि-कक्ष में आरती को अधिक देर
इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। निश्चित समय पर ही पीएम आरती से मिलने आ पहुँचे थे। बड़ी
ही गर्म-जोशी के साथ पीएम ने आरती से हाथ मिलाते हुए हँसकर पूछा-“यहाँ आने में कोई असुविधा तो नहीं हुई, बेटी।”
“कैसी असुविधा सर, आपने यहाँ पर
बुलाकर मुझे जो सम्मान दिया है वह ही क्या कुछ कम है। यहाँ पर बिताया हुआ एक-एक
पल, मेरे जीवन के लिए अविस्मरणीय पल होगा।” आरती ने बड़ी ही
शालीनता के साथ उत्तर दिया।
“नहीं आरती, तुम्हारा काम ही इतना
अच्छा और महान था कि हर किसी को तुमसे मिलकर गर्व की अनुभूति होगी। आदमी का कार्य
ही तो उसे महान बना देता है। तुम्हारे साहसपूर्ण कार्य के लिए हम सब तुम्हारे
बहुत-बहुत आभारी हैं।” पीएम ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा।
“नहीं सर, इसमें आभार कैसा, ये तो
मेरा कर्तव्य था और मैंने तो मात्र अपने कर्तव्य को ही निभाया था।” आरती ने कहा।
और इसी बीच चाय-नाश्ता आ चुका था।
आरती ने फ्रूट-ज्यूस ही लेना पसन्द किया और प्रधानमंत्री ने चाय की चुस्की लेते
हुए आरती से पूछा-“बेटी, हमें अभी-अभी बताया गया है कि तुम एक चैरिटी-शो का आयोजन स्लम-एरिया
में रहने वाले गरीब बच्चों के लिए करने जा रहे हो।”
“हाँ, यह सच है सर। हम गरीब और
असहाय बच्चों के लिए ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूलस् बनाना चाहते हैं जहाँ पर कि उन
छात्रों के रहने के लिए हॉस्टिलस्, खाने-पीने और पढ़ाई आदि की निःशुल्क व्यवस्था
हो सके। इसके साथ नारी-शिक्षा और नारी-सुरक्षा भी हमारी संस्था *बचपन-फॉउन्डेशन*
के मिशन का एक भाग है।” आरती ने चैरिटी-शो के उद्देश्य को
बताते हुए कहा।
“और क्या-क्या सुविधाऐं होनी
चाहिऐं उस स्कूल में, बेटी।” पीएम ने बाल-मन आरती से पूछा।
“उसमें लड़के और लड़कियों, दोनों
के लिए पढ़ाई-लिखाई की व्यवस्था होनी चाहिए और किताब-कॉपी, पैन-पैंसिल आदि सभी कुछ
सभी को निःशुल्क मिलना चाहिए।” आरती के बाल-मन ने उत्साहित
होकर कहा।
“इसके अलावा और क्या होना चाहिए
उस स्कूल में, बेटी।” पीएम ने आरती के बाल-मन को और टटोलने
का प्रयास किया।
“नहीं, फिलहाल तो इतना ही काफी
रहेगा। और हाँ, यदि हो सके तो विद्यार्थियों के खेलने के लिए मैदान,
कॉम्प्यूटर-लैब और इन्टरनैट की सुविधा के साथ-साथ लाइब्रेरी में ई-बुक्स भी मिल
सके तो बहुत अच्छा रहेगा।” आरती ने अपने मन की बात कही।
आरती बोल रही थी और पीएम का मन पिघल
रहा था। उन्हें रह-रह कर बस, यही ख्याल आ रहा था कि देश के बच्चे जिस काम को करने
का मन बना सकते हैं और कुछ करने का बीड़ा भी उठा सकते हैं तो हम लोग इतनी बड़ी
सत्ता और सामर्थ्य के होते हुए भी, उन स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के
उत्थान के विषय में, क्या सोच भी नहीं सकते।
और मैं भी तो उसी तरह के बच्चों में
से एक बच्चा हूँ जिसने अपने संघर्ष-मय जीवन के सफर की शुरुआत ही, स्लम-एरिया की उस
छोटी-सी झोंपड़ी से की थी। वह भी तो कभी स्लम-एरिया में ही रहकर अपनी गुजर-बसर
किया करता था और लैम्प-पोस्ट के नीचे टाट के बोरे पर बैठकर ही तो अक्सर गणित के
सवाल किया करता था। बिल्लू, माधव, सर्किट, गोलू और छुटकी तो आज भी उसके ख्यालों
में कभी-कभार जाने-अंजाने में घूम ही जाते हैं।
कैसे भूल सकता हूँ मैं अपनी जिन्दगी
के वे गर्दिश के दिन और वे दर्दीली रातें, जब मैं खुद ही कभी किसी सेठ की एक
छोटी-सी दुकान पर काम किया करता था और मेरी माँ भी कभी सेठानी के घर पर वर्तन साफ
किया करती थी। गरीबी की सौनी-गंध तो आज भी उसके मन-मस्तिष्क पर अटी पड़ी थी। विशाल
देश के सशक्त पीएम की आँखों में, आज पहली बार आँसू देखे गए।
उन्होंने अपने पीए मानस कुलकर्णी को
बुलाकर पूछा-“मानस, जरा देखो, क्या एज्यूकेशन मिनिस्टर गर्विता अभी यहीं हैं या चले गए।
और यदि न गए हों तो उन्हें अभी यहीं पर बुलवा लो।”
और कुछ ही समय में एज्यूकेशन
मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव भी आरती और पीएम के साथ में थीं।
“हम हर स्टेट में, कम से कम एक-एक
तो ऐसे रैज़ीडेंशियल स्कूल बनाना चाहते हैं जहाँ पर छात्रों के रहने के लिए
हॉस्टिल के साथ, खाने-पीने और पढ़ाई की निःशुल्क व्यवस्था हो सके। और उन स्कूलों
में ई-बुक्स की सुविधायुक्त लाइब्रेरी और वाई-फाई की कनेक्टिविटी और
कॉम्प्यूटर-लैब आदि की सुविधा के साथ-साथ विद्यार्थियों के खेलने के लिए मैदान भी
हों।” पीएम ने एज्यूकेशन मिनिस्टर गर्विता श्रीवास्तव के
सामने अपना विचार रखा।
“हाँ, हो सकेगा सर, और हमारे पास
पर्याप्त मात्रा में फण्ड भी है। पर इससे भी अच्छा यह रहेगा कि हम इस तरह के
स्कूलस् के ऐप्रूवल को पब्लिक पार्टनर-शिप में ले जाऐं और उस पर सेवा-भावी
संस्थाओं को जमीन, भवन-निर्माण और अन्य व्यवस्था के लिए सब्सिडी और सहायता दें, तो
यह काम आसान भी रहेगा और प्रभावशाली भी। इससे सरकार का स्कूलों पर नियंत्रण भी बना
रहेगा, जिसका समय-समय पर स्कूल-निरीक्षकों द्वारा निरीक्षण और ऑडिट भी किया जा
सकेगा।” एज्यूकेशन मिनिस्टर ने अपना सुझाव रखा।
“नहीं, हम चाहते हैं कि इस तरह के
रैज़ीडेंशियल स्कूलस् को भी सेन्ट्रल स्कूलस् की तर्ज पर ही सेन्ट्रल गवर्नमेंट के
द्वारा गवर्न किया जाय और यदि सेवा-भावी सामाजिक संस्थाऐं भी, पब्लिक पार्टनर-शिप में
या फिर स्वयं ही इसी तरह के फ्री-रैज़ीडेंशियल स्कूलस् खोलना चाहें तो सरकार उन
संस्थाओं को भी जमीन मुहैया कराने के साथ-साथ, भवन-निर्माण और अन्य व्यवस्था के
लिए सब्सिडी देकर उन सेवा-भावी संस्थाओं की सहायता करे।”
पीएम ने सुझाव दिया।
“हाँ, तब तो यह योजना और भी अधिक प्रभावशाली रहेगी। इससे सरकारी स्कूलों और
संस्था-गत स्कूलों में एक ही प्रकार का मानक निश्चित किया जा सकेगा, जो शिक्षा और
व्यवस्था के स्तर को भी समान बनाए रखने में सहयोगी सिद्ध होगा।” एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव ने इस विचार को और भी
अधिक प्रभावशाली बताया।
“ठीक है, अब इस योजना को हमें
जल्दी से जल्दी लागू करना होगा ताकि आने वाले सत्र से ही गरीब बच्चों की पढ़ाई
विधिवत् रूप से चालू हो सके। और इस योजना के कार्यान्वयन के लिए जिस भी विभाग और
जिस भी मंत्रालय से सम्पर्क करना है, करके इस योजना को जल्दी से जल्दी पूरा कराऐं।” पीएम ने एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव को आवश्यक
दिशा-निर्देश देते हुए कहा।
“ठीक है, कल से ही मैं इस योजना
पर काम शुरू करवा देती हूँ और हमें आशा है कि हम इस काम को बहुत जल्दी ही पूरा कर
सकेंगे।” शिक्षा-मंत्री ने पीएम को विश्वास दिलाया।
आरती खुश थी क्योंकि वह जो कुछ भी
करना चाहती थी, वही सब कुछ तो हो रहा था। उसके विचारों को, उसकी भावना को, उसकी
कल्पना को, देश के विद्वान प्रधानमंत्री ने समझा है, स्वीकारा है और उसे पूरा करने
का संकल्प भी किया है। आज उसका एक बहुत बड़ा सपना जो साकार होने जा रहा था।
मुस्कुराते हुए पीएम ने आरती से
कहा-“आरती, अब इसी सत्र से गरीब बच्चों को पढ़ने के लिए *फ्री-एज्यूकेशन* के
अन्तर्गत सभी राज्यों में कम से कम एक-एक *रैज़ीडेंशियल स्कूलस्* तो हो ही जाऐंगे
और फिर निकट भविष्य में हम इस योजना का और भी अधिक विस्तार करेंगे। साथ ही जो
सेवाभावी संस्थाऐं इस प्रकार के स्कूल खोलना चाहेंगी, उन्हें भी सरकार की ओर से
सब्सिडी और अन्य सहायता मिलती रहेगी।”
आरती नहीं समझ पा रही थी कि किन
शब्दों से वह पीएम सर को धन्यवाद के दो शब्द कहे। शब्द और वाणी दोनों ही उसका साथ
नहीं दे पा रहे थे। शब्द बौने पड़ गए थे और वाणी लड़खड़ा रही थी। बस, आँखों से
निकलते आँसुओं ने, खुशी के छलछलाते आँसुओं ने, वह कमी पूरी कर दी थी और बिना बोले
ही आरती ने सब कुछ बोल दिया था और बिना बोले ही पीएम ने सब कुछ सुन भी लिया था।
“नहीं बेटी, आज तो सचमुच ही तुमने
मेरी आँखें खोल दी हैं। कभी-कभी तो बच्चे ही बड़े-बड़ों को वह सब कुछ सिखा देते
हैं जो कि उन्हें करना चाहिए। आज तुमने मुझे बता दिया है बेटी, कि यदि हमें अपने
कल के देश को बचाना है तो हमें आज के बचपन को बचाना होगा, बचपन को सँवारना होगा।
आज के बच्चे ही तो कल का देश हैं। और जब बच्चों का बचपन ही नहीं बच सकेगा तो फिर
कल का देश कैसे बच सकेगा। जब देश का बचपन ही भूखा होगा तो देश कैसे खुशहाल रह
सकेगा।” पीएम ने गम्भीर होकर आरती से कहा।
और जब आरती ने पीएम से अपने
चैरिटी-शो में आने के लिए विशेष-आग्रह किया तो उन्होंने बताया कि कल से ही उनका दस
दिन की विदेश-यात्रा का शिड्यूल है और आज रात को ही उन्हें जाना होगा। पर हाँ,
तुम्हारे चैरिटी-शो में एज्यूकेशन मिनिस्टर श्रीमती गर्विता श्रीवास्तव जरूर
पहुँचेंगी। मैं उनसे कहे देता हूँ।
और अन्त में पीएम ने अपना पर्सनल
मोबाइल नम्बर आरती को देते हुए कहा-“बेटी आरती, जब कभी
भी आवश्यकता हो, तुम मुझसे निःसंकोच कभी भी सम्पर्क करके सकोगे।”
आरती पीएम के सीधे, सरल और
सादगी-पूर्ण व्यवहार से बेहद प्रसन्न थी। उसे अपने पीएम पर गर्व की अनुभूति हो रही
थी। क्योंकि वह अपनी अपेक्षा से अधिक ही पा चुकी थी।
दूसरी ओर खुश, पीएम भी थे। क्योंकि
आज वे उस बालिका के सपनों को साकार करने जा रहे थे जो उन जैसे ही स्लम-एरिया में
रहने वाले गरीब बच्चों के लिए कुछ करने का मन बना चुकी थी। सच में तो वह उनके ही
सपनों को साकार करने का संकल्प कर चुकी है।
*****
...आनन्द विश्वास
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