Thursday, 27 February 2014

"आई रेल, आई रेल"

बन्टी   बबलू  खेल   रहे  थे,
कुर्सी    आगे   ठेल  रहे  थे।
तभी   दौड़ती  पिंकी  आई,
और  साथ  में  टॉफी  लाई।
बोली आओ,खेलें खेल,
आई   रेल,  आई   रेल।
बबली  लाई  झंडी घर  से,
स्वीटी लाई  सीटी  घर से।
बन्टी  लाई  घर  से   धागा,
टौमी को  कुर्सी  से  बांधा।
शुरू हुआ बच्चों का खेल,
आई    रेल आई    रेल।
तभी पास का कुत्ता आया,
टौमी   को  देखागुर्राया।
दौनों  कुत्ते  लड़े   पड़े   थे,
बन्टी  बबलू  गिरे  पड़े  थे। 
लगी चोट, पर भाया खेल,
आई     रेल आई   रेल।

-आनन्द विश्वास

2 comments:

  1. बाल साहित्य को समर्पित है आपका ब्लॉग...बहुत सुंदर और सरल बाल कविता...बचपन की याद ताज़ा हो गई...

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