Thursday, 27 February 2014

"मेरे घर में बना बगीचा"

मेरे   घर   में   बना   बगीचा,
हरी घास ज्यों बिछा गलीचा।

गेंदा,   चम्पा   और   चमेली,
लगे   मालती  कितनी प्यारी।
मनीप्लांट    आसोपालव   से,
सुन्दर   लगती   मेरी  क्यारी।

छुई-मुई  की  अदा अलग  है,
छूते   ही   नखरे   दिखलाती।
रजनीगंधा  की  वेल  निराली,
जहाँ जगह मिलती चढ़ जाती।

तुलसी  का  गमला  न्यारा है,
सब  रोगों   को  दूर  भगाता।
मम्मी  हर दिन अर्ध्य चढ़ाती,
दो  पत्ते   तो  मैं   भी  खाता।

दिन  में सूरज रात को चन्दा,
हर  रोज़  मेरी  बगिया आते।
सूरज  से   ऊर्जा  मिलती  है,
शीतलता   मामा   दे   जाते।

रोज़   सबेरे  हरी  घास  पर,
मैं    नंगे  पाँव  टहलता   हूँ।
योगा,  प्राणायाम  और फिर,
हल्की   जोगिंग   करता  हूँ।

दादाजी   आसन  सिखलाते,
और  ध्यान  भी करवाते  हैं।
प्राणायाम   योग   वे   करते,
और   मुझे  भी  बतलाते  हैं।

और शाम को चिड़िया-बल्ला,
कभी-कभी  तो  कैरम  होती।
लूडो,  साँप-सीढी  भी  होती,
या दादाजी  से गपसप होती।

फूल  कभी  मैं  नहीं  तोड़ता,
देख-बाल मैं  खुद  ही करता।
मेरा  बगीचा  मुझको  भाता,
इसको  साफ  सदा मैं रखता।

जग  भी तो  है एक  बगीचा,
हरा-भरा  इसको  रखना  है।
पर्यावरण     सन्तुलित   कर,
धरती   को  हमें  बचाना  है।
-आनन्द विश्वास

"अमृत-कलश बाँट दो जग में"

अगर  हौसला  तुम  में  है तो,
कठिन  नहीं  है   कोई  काम।
पाँच-तत्व  के शक्ति-पुंज तुम,
सृष्टी    के   अनुपम    पैगाम।
तुम  में  जल है, तुम में थल है,
तुम   में  वायु  और  गगन  है।
अग्नि-तत्व से ओत-प्रोत तुम,
और  सुकोमल  मानव मन है।
संघर्ष  आज, कल  फल  देगा,
धरती  की  शक्ल  बदल देगा।
तुम  चाहो  तो इस धरती पर,
सुबह   सुनहरा   कल   होगा।
विकट  समस्या   जो  भी  हो,
वह उसका  निश्चित हल देगा।
नीरस  जीवन   में  भर  उमंग,
जीवन  जीने  का  बल  देगा।
सागर   की  लहरों  से  ऊँचा,
लिये   हौसला  बढ़  जाना है।
हो  कितना  भी  घोर  अँधेरा,
दीप  ज्ञान   का  प्रकटाना  है।
उथल-पुथल हो  भले सृष्टि में,
झंझावाती   तेज    पवन  हो।
चाहे   बरसे  अगन  गगन  से,
विचलित नहीं तुम्हारा मन हो।
पतझड़  आता   है  आने   दो,
स्वर्णिम  काया  तप जाने  दो।
सोना  तप  कुन्दन  बन  जाता,
वासन्ती   रंग   छा   जाने  दो।
संधर्षहीन  जीवन क्या जीवन,
इससे तो  बेहतर  मर  जाना।
फौलादी    ले    नेक    इरादे,
जग   को  बेहतर  कर  जाना।
मानव-मन  सागर   से  गहरा,
विष, अमृत  दोनों  हैं  घट में।
विष पी लो विषपायी बनकर,
अमृत-कलश बाँट दो जग में।
-आनन्द विश्वास

"मेरी कार, मेरी कार"

मेरी    कार,    मेरी    कार,
सरपट   दौड़े,   मेरी   कार।

पापा  को  ऑफिस ले जाती,
मम्मी  को  बाजार  घुमाती।
कभी  द्वारका , कभी आगरा,
सैर -  सपाटे   खूब  कराती।

भैया  के  मन  भाती  कार,
मेरी    कार,    मेरी   कार।

जब  शादी  में  जाना  होता,
या  मंदिर  में जाना   होता।
इडली,  ढोसापीजा,  बर्गर,
जब  होटल में खाना  होता।

सबको   लेकर  जाती  कार,
मेरी    कार,     मेरी    कार।

बस  के धक्के और  धूल  से,
गर्मी   हो   या   पानी  बरसे।
मुझे    बचाती,   मेरी   कार,
खाँसी   भागी, मनवा  हरसे।

और न आता कभी  बुखार,
मेरी    कार,    मेरी    कार।

छोटा   भैया   कहता - दीदी,
सभी  खिलोने लेकर चलते।
घर-घर  खेलेंचलो कार  में,
पापा-मम्मी खुश-खुश रहते।

जब  से  आई,  घर  में  कार,
मेरी     कार,     मेरी    कार।
...आनन्द  विश्वास

"आई रेल, आई रेल"

बन्टी   बबलू  खेल   रहे  थे,
कुर्सी    आगे   ठेल  रहे  थे।
तभी   दौड़ती  पिंकी  आई,
और  साथ  में  टॉफी  लाई।
बोली आओ,खेलें खेल,
आई   रेल,  आई   रेल।
बबली  लाई  झंडी घर  से,
स्वीटी लाई  सीटी  घर से।
बन्टी  लाई  घर  से   धागा,
टौमी को  कुर्सी  से  बांधा।
शुरू हुआ बच्चों का खेल,
आई    रेल आई    रेल।
तभी पास का कुत्ता आया,
टौमी   को  देखागुर्राया।
दौनों  कुत्ते  लड़े   पड़े   थे,
बन्टी  बबलू  गिरे  पड़े  थे। 
लगी चोट, पर भाया खेल,
आई     रेल आई   रेल।

-आनन्द विश्वास

Wednesday, 26 February 2014

*ठंडी आई, ठंडी आई*

*ठंडी आईठंडी आई*

ठंडी     आई,    ठंडी    आई,
ओढ़ो  कम्बल   और   रजाई।
कोहरे  ने  जग   लिया  लपेट,
गाड़ी   नौ - नौ   घण्टे   लेट।
हवाई जहाज की शामत आई।
ठंडी    आई,     ठंडी    आई।
पानी  छूने   से   डर  लगता,
हाथ  तापने  को  मन करता।
आग  जला  कर  तापो  भाई,
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।
बन्द  हुईं  बच्चों  की   शाला,
ठंडी ने क्या- क्या कर डाला।
घर पर  लड़ते  बहना  भाई।
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।
बात करो तो धुँआ निकलता,
चुप रहने से काम न चलता।
कैसी   ईश्वर   की   चतुराई।
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।
देखो  कैसा   बना   बगीचा,
हरी घास पर श्वेत गलीचा।
फूलों  की  आभा  मन भाई।
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।
फसलों  को  पाले  ने मारा,
बेबस हुआ किसान बिचारा।
उसके  घर  तो  आफत आई।
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।
और   झोंपड़ी   अकुलाती   है,
दुख-सुख तो सब सह जाती है।
पर ठंडी  वह  सह  ना पाई।
ठंडी    आई,    ठंडी    आई।

...आनन्द विश्वास.