Wednesday, 2 March 2016

मंकी और डंकी

मंकी और डंकी
...आनन्द विश्वास
डंकी  के  ऊपर  चढ़  बैठा,
जम्प लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ    करता   डंकी,
उसका  हाल  हुआ बेहाल।
पूँछ पकड़ता कभी खींचता,
कभी पकड़कर खींचे कान।
कैसी अज़ब  मुसीबत आई,
डंकी   हुआ   बहुत  हैरान।
बड़े  जोर  से  डंकी  बोला,
ढेंचूँ  -  ढेंचूँ ,  ढेंचूँ  -  ढेंचूँ।
खों - खों  करके  मंकी पूछे,
किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।
डंकी जी   ने  सोची  युक्ति,
लोट  लगाकर जड़ी दुलत्ती,
खीं-खीं  करता मंकी भागा,
टूट  गई   उसकी   बत्तीसी।

Wednesday, 10 February 2016

मोबाइल फोन

मोबाइल फोन
..आनन्द विश्वास
माँ, मुझे मोबाइल फोन चाहिए ही, बस। अब और कुछ भी नहीं सुनना है मुझे। अब तो हद ही हो गई, माँ। आपको खबर है माँ, मेरे सभी दोस्तों के पास एक से एक अच्छे सुपर, इम्पोर्टेड मोबाइल फोन हैं और वे भी सब, एक से एक अच्छी रिंग-टोन वाले, एक से एक अच्छी डिज़ाइन वाले और टच स्क्रीन वाले। और माँ, मेरे पास तो कोई भी मोबाइल फोन नहीं है। अब तो बस माँ, मुझे भी मोबाइल फोन चाहिये ही और वह भी किसी अच्छी कम्पनी का, ऐंड्रॉयड-वन और टच स्क्रीन वाला, मोबाइल फोन। भोला भास्कर, अपनी माँ से जिद कर बैठा।      
भोले भास्कर का बाल-मन हठ कर बैठा कि उसके पास भी किसी अच्छी कम्पनी का एक अच्छा-सा मोबाइल फोन तो होना ही चाहिए, जैसे कि उसके स्कूल के दूसरे साथियों के पास में हैं। वह अपने मन में तब इनफीरियरटी-कॉम्प्लेक्स फील करने लगता, जब उसके दूसरे साथी एक दूसरे को अपने पास बुलाने के लिये मोबाइल फोन से मिस-कॉल करते, एक दूसरे को एस.एम.एस. करते, ई-मेल करते, व्हाटस्-अप पर तरह-तरह की बातें करते, जोक्स शेयर करते और अपने मित्रों के साथ खूब देर तक ढ़ेर सारी बातें किया करते। इतना ही नहीं जब वे अकेले होते तब कान में इयर-फोन लगाकर, न जाने कैसे-कैसे गाने सुनते। कभी हँसते तो कभी अपनी मस्ती में ही झूमने लगते।
भोले भास्कर का भोला बाल-मन बार-बार मोबाइल फोन को पाने के लिए अपनी माँ से हठ कर बैठता और फिर अपने मन में इम्पोर्टेड टच स्क्रीन वाला मोबाइल फोन लेने की ठान लेता।
जिद न करे तो वह बालक ही कैसा बालक। जिद्दी और हठी होना तो बालक का स्वभाविक गुण होता ही है और बालक को तो जिद्दी होना ही चाहिये।
कुछ अच्छा बनने की जिद, कुछ अच्छा करने की जिद, कुछ अच्छा सपना देखने की जिद, कुछ ऐसी जिद जो दुनियाँ के सामने एक मिशाल बन जाये। सारी दुनियाँ कहने लगे कि जिद हो तो ऐसी हो।
जिद तो भरत ने भी की थी, शेर के दाँतों को गिनने की, जिद तो ध्रुव ने भी की थी, अटल तपस्या करने की और जिद तो हठी एकलव्य ने भी की थी, आचार्य द्रोणाचार्य से ही शिक्षा पाने की।
इतिहास तो ढ़ेर सारे जिद्दी और हठी बालकों के प्रेरणादायी उदाहरणों से अटा पड़ा है। जिद्दी बाल-कृष्ण ने भी तो जिद ही की थी चन्द्र-खिलौने से खेलने की और हठी बाल-हनुमान ने तो सूरज से ही शिक्षा प्राप्त करने का अपना मन बना लिया था।
पर प्रश्न तो जिद की दिशा का होता है। उचित और अनुचित का होता है। चंचल बाल-मन की गति की दिशा का होता है। यदि गति सकारात्मक और सही दिशा में हो तो परिणाम अच्छे होते हैं और यदि मन की गति नकारात्मक हो तो अच्छे परिणाम की अपेक्षा कैसे की जा सकती है।
अब भोले भास्कर के हठी बाल-मन को कौन समझाये और कैसे समझाये कि बेटा पढ़ने-लिखने के लिये मोबाइल फोन की नहीं, किताब-कॉपी की, पेन-पेंसिल की और मन में सच्ची श्रद्धा और लगन की आवश्यकता होती है।  
अच्छे इम्पोर्टेड सुपर मोबाइल फोन, अच्छी रिंग-टोन वाले मोबाइल फोन और टच-स्क्रीन वाले मोबाइल फोन तो पठन-पाठन की क्रिया के अवरोधक तत्व ही होते हैं। पढ़ने के लिये तो जरूरत होती है, एक बुलन्द हौसले की, एक ऐसे सपने की, एक ऐसी लगन की, जो रातों की नींद उड़ा दे और दिन में पल-पल मन को बेचैन कर दे।  
माँ के समझाने की हर कोशिश भास्कर के अड़ियल पिच पर बॉउन्सर की तरह, सर के ऊपर से निकल जाती और कोई भी असर न होता भोले भास्कर के दृढ़-निश्चयी, जिद्दी और हठी बाल-मन पर।
 ये उम्र ही कुछ ऐसी होती है, जिसमें बच्चे अक्सर अपने हम-उम्र साथियों को ही अपना शुभ-चिन्तक और हितैशी मानते हैं और उनकी बातों को सही। अपने माता-पिता, गुरू और अपने शुभ-चिन्तकों की सही बात को भी वे तब ही सही मानते हैं जब उनके हम-उम्र साथी उन बातों को सही ठहरा दें, अन्यथा हरगिज़ नहीं। फिसलन भरी कोमल कच्ची उम्र कहाँ सोच पाती है, इतना सब कुछ ।
पर बेचारी भास्कर की माँ, करे भी तो आखिर क्या करे। कहाँ से लाकर दे वह इतना मँहगा मोबाइल फोन।
जब से भास्कर के पापा का स्वर्गवास हुआ है, तभी से वह खुद अपने आप से ही हैरान परेशान थी और ऊपर से उसका इकलौता बेटा भास्कर, जो अपनी जिद के आगे, माँ की एक भी बात सुनने को तैयार न था।
दो दिन से भास्कर अपनी जिद पर अड़ा था और कल शाम को तो उसने खाना भी नहीं खाया। अब तो उसका कहना था कि जब तक उसे मोबाइल फोन नहीं मिल जाता, तब तक वह स्कूल ही नहीं जाएगा।
समस्या बड़ी गम्भीर थी और उसका हल उतना ही जटिल। रात भर न सो सकी थी भास्कर की माँ।
दूसरे दिन हर रोज की तरह सुबह स्कूल के रिक्शेवाले ने नीचे से आवाज लगाई-भास्कर चलो, जल्दी आओ।
कोई हलचल का अनुभव न होने पर रिक्शेवाले ने एक बार फिर से आवाज लगाई, शायद भास्कर ने सुन न पाया हो। पर सुनाया तो उसे जाता है जो सुनना चाहता हो और जो सुनकर भी नहीं सुनना चाहता हो, उसे कौन सुना सकता है।
पर रिक्शे वाले भैयाजी को जबाब तो देना ही था अतः अपने अपार्टमेंन्ट की बालकनी में से ही भास्कर ने रिक्शेवाले भैयाजी से कहा-आज मुझे स्कूल नहीं जाना है, भैया जी।
क्यों, क्या हुआ भास्कर, तू स्कूल क्यों नहीं जा रहा है।ऐसा कहते-कहते तो उसकी क्लास-मैट गर्विता, अब तक तो रिक्शे से उतरकर, सीढ़ी से होती हुई उसके पास तक पहुँच चुकी थी।
 “क्यों नहीं जा रहा है भास्कर, तेरी तबियत तो ठीक है ना। क्लास-मैट गर्विता ने आतुरता-वश भास्कर से पूछा।  
नहीं, बस ऐसे ही। आज मेरा मन नहीं है।भास्कर ने अपनी जिद वाली बात को गर्विता से छुपाते हुए कहा।
आखिर क्या बात है भास्कर, क्यों नहीं जा रहा है तू स्कूल। गर्विता ने कारण जानना चाहा।
कुछ भी तो नहीं। बस, यूँ ही। मन नहीं है, कहा ना। भास्कर ने एक बार फिर से अपनी बात को छुपाने का प्रयास किया।  
और तभी भास्कर की माँ ने गर्विता को बताया-अरे बेटी, कल रात से ही इसने खाना नहीं खाया है और मोबइल फोन लेने की जिद पर अड़ा हुआ है। कह है कि जब तक मुझे मोबाइल फोन नहीं मिल जाएगा, तब तक मैं स्कूल नहीं जाउँगा। अब तू ही बता बेटी, कहाँ से लाकर दूँ मैं, इसे इतना मँहगा मोबाइल फोन।
भास्कर की माँ के मन की पीढ़ा और आर्थिक विवशता स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही थी।
क्या करेगा भास्कर, तू मोबाइल फोन का। कड़े लहज़े में गर्विता ने भास्कर से पूछा।
देख न गर्विता, अपने स्कूल में सभी बच्चों के पास एक से एक अच्छे इम्पोर्टेड मोबाइल फोन हैं बस मेरे पास ही नहीं है। और माँ मुझे मोबाइल फोन तक नहीं दिलवा रही है। भास्कर ने गर्विता को समझाते हुए कहा।   
कहाँ हैं भास्कर, सभी बच्चों के पास मोबाइल फोन। देख, मेरे पास तो कोई भी मोबाइल फोन नहीं है। भास्कर की बात को नकारते हुए गर्विता ने भास्कर से कहा।
तेरा क्या, तू तो लड़की है, तेरा तो सब कुछ चलेगा। पर मेरे सभी साथियों के पास तो एक से एक अच्छे मोबाइल फोन हैं। भास्कर ने एक बार फिर अपना तर्क प्रस्तुत किया।
मैं लड़की हूँ तो क्या हुआ। अच्छा बता तो सही कौन-कौन से तेरे साथी हैं जिनके पास मोबाइल फोन हैं। गर्विता ने भास्कर से जानना चाहा।   
रजत है, आकाश है, विकास है, पवन, राजू और सुधा, सभी के पास तो हैं, एक से एक अच्छे सुपर रिंग-टोन वाले और अच्छे इम्पोर्टेड मोबाइल फोन। भास्कर ने अपने सभी साथियों के नाम गिनवाते हुए गर्विता से गर्व के साथ कहा।
रजत के पास कहाँ हैं, मोबाइल फोन। गर्विता ने भास्कर से कहा।
हाँ है ना, दो दिन पहले ही तो उसके पापा ने उसे मोबाइल फोन दिलवाया है। पता है, मोबाइल फोन लेने के लिए कितनी जिद करनी पड़ी थी उसे, तब कहीं जाकर उसके पापा ने उसे मोबाइल फोन दिलवाया है। बड़ी मुश्किल से तैयार हुए थे उसके पापा, मोबाइल फोन दिलवाने के लिए। भास्कर ने गर्विता को अति उत्साहित होकर बताया।
अच्छा, ये तो बता, क्या है उसके मोबाइल फोन का नम्बर। गर्विता ने भास्कर से जानना चाहा।
रजत का मोबाइल नम्बर 989898.. है। भास्कर ने रजत का मोबाइल नम्बर गर्विता को बताते हुए कहा।
और भास्कर, क्या ये सभी लड़के अपने-अपने मोबाइल फोन स्कूल में लेकर जाते हैं। गर्विता ने जानना चाहा।
हाँ तो नहीं, और सब लड़के मोबाइल फोन पर ही आपस में बात-चीत करते रहते हैं, एसएमएस करते हैं, व्हाटस्-अप करते हैं और तरह-तरह के गाने भी सुनते हैं। और जब कभी कोई बोरिंग विषय को टीचर पढ़ा रही होती है तब पीछे की बैंच पर बैठकर आराम से अच्छे-अच्छे मोबाइल गेम्स खेलते रहते हैं। भास्कर ने अत्यधिक उत्साहित होकर गर्विता को बताया।
पर भास्कर स्कूल में तो मोबाइल फोन ले जाने की मनाही है। प्रिन्सीपल मेडम ने तो साफ मना किया हुआ है और फिर भी ये सब मोबाइल लेकर जाते हैं। ये बात कोई अच्छी बात तो नहीं है। गर्विता ने भास्कर को समझाते हुए कहा।
सब चलता है, कोई नहीं पूछता और ना ही कोई देखता है। भास्कर ने अति उत्साहित होकर गर्विता को बताया।
अच्छा, अब तू जल्दी से तैयार होकर स्कूल चल। गर्विता ने भास्कर से कहा
नहीं गर्विता, अब तो मैं स्कूल तभी जाऊँगा जब माँ मुझे मोबाइल फोन दिलवा देगी। और अब तो भास्कर ने अपनी मोबाइल लेने की जिद को गर्विता को बता ही दिया।
बस इतनी सी बात है, भास्कर। तो चल, मोबाइल फोन तुझे मिल जाएगा। अब तो स्कूल चल। गर्विता ने भास्कर को आश्वसन देते हुए कहा।
पर कैसे मिल जाएगा गर्विता। माँ तो कब से ना कर रही है। अपने मन की दुविधा को व्यक्त करते हुए भास्कर ने कहा।  
पर तुझे इससे क्या लेना-देना। अगर माँ नहीं दिलवाएँगी तो मैं दिलवा दूँगी, अपने पापा से कहकर या अपने पॉकेट-मनी में से। अब तो जल्दी से तैयार होकर स्कूल चल। नीचे भैया जी खड़े है और वैसे भी अब तो स्कूल के लिए देर भी हो रही है। गर्विता ने भास्कर से कहा।
गर्विता, तू कहीं मज़ाक तो नहीं कर रही है, सच-सच बोल। अपनी शंका व्यक्त करते हुए भास्कर ने कहा।
इसमें मज़ाक कैसा, अगर तू मोबाइल फोन लेकर ही पढ़ना चाहेगा तो फिर मैं, कैसे भी, कहीं से भी और कुछ भी करके, तुझे मोबाइल फोन लाकर ही दूँगी। गर्विता ने गम्भीर होकर कहा।
गर्विता से मोबाइल फोन मिलने के आश्वासन ने भास्कर के मन में पंख लगा दिए और वह झटपट स्कूल जाने के लिए तैयार होने लगा।
इधर भास्कर की माँ कुछ भी तो नहीं समझ पा रहीं थीं कि आखिर गर्विता ने भास्कर को ऐसा आश्वासन क्यों दे दिया। वह कहाँ से लाकर देगी उसे मोबाइल फोन। और क्या उसका दिया हुआ मोबाइल फोन, उसे लेना उचित रहेगा। अजीव संकट में पड़ गई थी भास्कर की माँ। पता नहीं अब क्या होगा।
पर जैसे ही भास्कर स्कूल जाने की तैयारी करने के लिए रूम के अन्दर गया, माँ के मन की व्याकुलता को भाँपते हुए गर्विता ने माँ से कहा-ऑन्टी, आप चिन्ता मत करो। मैं सब ठीक कर दूँगी। 
ठीक है बेटी, जैसा तू ठीक समझे। तू खुद ही समझदार है।भास्कर की माँ ने गर्विता से कहा।
और कुछ ही समय के बाद भास्कर और गर्विता अपने अन्य साथियों के साथ रिक्शे में बैठकर समय रहते ही स्कूल पहुँच गए। प्रार्थना और उसके बाद हर रोज़ की तरह सभी कक्षाओं में पढ़ाई चालू हो चुकी थी।
इधर गर्विता अपना मन बना चुकी थी कि आज वह इन सभी लड़कों को मोबाइल फोन के साथ रंगे हाथों पकड़वा कर ही दम लेगी। स्कूल की अनुशासन समिति का स्टूडेन्ट रिप्रिजेन्टेटिव होने के नाते उसका यह कर्तव्य भी था।
दूसरा पीरियड खेल का था और इसी पीरियड में उसने अपने पीटी सर से मिलकर प्रिन्सीपल मेडम को इस बात की सूचना दी कि उसकी क्लास के चार-पाँच लड़के स्कूल में मोबाइल फोन लेकर आते हैं और साथ ही उसने रजत के मोबाइल फोन का नम्बर भी बता दिया। पीटी सर के लिए तो बस इतनी सूचना ही काफी थी। वे स्कूल की डिसीप्लेन कमेंटी के इंचार्ज भी थे।
रिसेस के बाद पाँचवाँ पीरियड चल रहा था। कक्षा में साक्षी मेडम विज्ञान के किसी विषय को बड़ी तन्मयता के साथ समझा रहीं थी। कक्षा में पिन ड्रोप सायलेंस था। तभी कक्षा में मोबाइल फोन की रिंग-टोन बजने लगी। ये आवाज़ थी, रजत के मोबाइल फोन की।
रिंग-टोन ने शान्त वातावरण में हलचल पैदा कर दी। किसी के लिए तो ये रिंग-टोन आश्चर्य का विषय थी तो किसी के लिए क्रोध का कारण। पर रजत के चेहरे की तो हवाइयाँ उड़ी हुईं थी। 
 किसके पास है मोबाइल फोन। साक्षी मेडम ने तेज आवाज में क्रोधित होकर कहा।
पूरी क्लास में एकदम सन्नाटा पसर गया और रजत तो काँपने ही लगा। उसने तो सपने में भी कभी ऐसा नहीं सोचा था, काँपते हुए उसके मुँह निकला-सौरी...मेडम सौरी...
क्यों, सौरी का क्या मतलब है। तुम्हें मालूम नहीं है कि स्कूल में मोबाइल फोन लाना मना है। चलो अपना मोबाइल फोन लेकर इधर आओ। साक्षी मेडम ने क्रोध भरे स्वर में रजत से कहा।
और रजत अपने हाथ में मोबाइल फोन लिए हुए अपनी सीट से उठकर मेडम की ओर खिसकने लगा।
रजत से मोबाइल फोन लेकर साक्षी मेडम ने अपनी टेबल पर रख लिया और रजत को क्लास के बाहर खड़े होने का आदेश देते हुए कहा-जाओ, क्लास के बाहर खड़े हो जाओ, इस पीरियड के बाद तुम्हारी शिकायत प्रिन्सीपल मेडम से की जाएगी। 
उधर प्रिन्सीपल मेडम राउन्ड पर थीं और रजत को क्लास के बाहर खड़ा देखकर उन्होंने रजत से बाहर खड़े होने का कारण पूछा तो रजत ने बताया कि वह स्कूल में मोबाइल फोन लेकर आया था इसलिए मेडम ने उसे क्लास से बाहर निकाल दिया है।
जब तुम्हें मालूम है कि स्कूल में मोबाइल फोन लाना मना है तब भी तुम स्कूल में मोबाइल फोन लेकर आते हो, इससे पढ़ाई में डिस्टर्वेंन्स होता है। कल अपने गार्ज़ियन को बुलाकर लाओ और जब तक वे मुझसे नहीं मिलते हैं, तब तक तुम क्लास में नहीं बैठोगे। ऐसा कहते हुए प्रिन्सीपल मेडम चली गईं। 
और कुछ ही समय के बाद चपरासी एक सर्कुलर लेकर आया जिसमें लिखा हुआ था-किसी भी विद्यार्थी को स्कूल में मोबाइल फोन लेकर आना मना है, पता चला है कि कुछ विद्यार्थी अभी भी मोबाइल फोन लेकर स्कूल में आते हैं। अब यदि स्कूल केम्पस में किसी भी विद्यार्थी के पास मोबाइल फोन पाया गया तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा। आज्ञा से .. प्रिन्सीपल मेडम।
साक्षी मेडम बच्चों को नेटिस सुना रहीं थी। नोटिस का एक एक शब्द भास्कर की मोबाइल फोन लेने की जिद के बर्फीले पहाड़ को पिघला रहा था। उसके मन में बार-बार यही प्रश्न उभर कर आ रहा था कि जब वह अपना मोबाइल फोन स्कूल में ला ही नहीं सकेगा तब उसे खरीदने या गर्विता से लेने से क्या फायदा।
वह अपना मन बना चुका था कि अब उसे मोबाइल फोन नहीं लेना है और ना ही माँ से मोबाइल फोन लेने की जिद करनी है।
स्कूल से वापस आते समय रिक्शे में बैठते ही उसने गर्विता से कहा-गर्विता, अब मुझे मोबाइल फोन नहीं चाहिए।
क्यों, क्या हुआ भास्कर तुझे। अब तू मोबाइल फोन लेने के लिए ना क्यों कर रहा है।गर्विता ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
हाँ गर्विता, अब तो मेरे सभी साथी भी स्कूल में मोबाइल लेकर नहीं आ सकेंगे और लाने पर स्कूल से निकाल दिया जाएगा। तब मोबाइल फोन मेरे लिए किस काम का। भास्कर ने कहा।
 “ठीक है तेरी जैसी इच्छा। पर मैं तो अब भी तुझे मोबाइल फोन दिलाने के लिए तैयार हूँ। गर्विता ने कहा।
नहीं गर्विता, अब मुझे अपना मन पढ़ने में लगाना होगा। कहते हुए भास्कर ने लम्बी सांस ली।
पर रजत को फोन किसने किया था यह किसी को पता नहीं चल सका।
...आनन्द विश्वास


Tuesday, 9 February 2016

आया मधुऋतु का त्योहार

खेत-खेत   में   सरसों  झूमेसर-सर  वहे  वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित  मन  ले लजवन्ती,
मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।
चारों  ओर  वसन्ती  आभाहर्षित  हिया  हमार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने  पतझड़  को  भी,
आज वसन्ती  प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से नयनों को,
जीवन  का  आधार  मिला।
मस्त  गगन हैमस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँक  कर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब,
कर  सोलह  श्रृंगार  चली।
गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,
बाग-बाग  में  कली-कली।
या फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

                                          ....आनन्द विश्वास

Tuesday, 5 January 2016

*मेरे पापा सबसे अच्छे*

बालकों में अच्छे संस्कार सिंचन
का
एक प्रयास
और...
*मेरे पापा सबसे अच्छे*
पुस्तक
में
बालोपयोगी
बाल-कविताओं
और
बाल-गीतों
का समावेश किया गया है।
इस संकलन में 25 बाल-कविताएँ हैं।
जिसे
उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ
से
प्रकाशित किया गया है।
इस पुस्तक की प्रस्तावना कुछ इस प्रकार है।
प्रस्तावना
कविता मन से निकलकर मन तक पहुँचती है और विशेषकर कोमल बाल-मन पर तो अपना विशेष प्रभाव छोड़ती ही है। अच्छी शिक्षात्मक ज्ञान-वर्धक बातों को और संस्कारों को कविताओं और गीतों के माध्यम से कोमल बाल-मन तक सहज रूप में पहुँचाया जा सकता है।
साथ ही, बालक सरल भाषा में लिखी गई गेय कविताओं और गीतों को आसानी से याद भी कर लेते हैं, वे उन्हें चलते-फिरते गुनगुनाते भी रहते हैं और उनका अपने दैनिक जीवन में अनुकरण भी करते हैं।
इस पुस्तक में कविताओं और गीतों के माध्यम से अच्छी-अच्छी जीवनोपयोगी और ज्ञान-वर्धक बातों को बच्चों के कोमल बाल-मन तक पहुँचाने का प्रयास किया गया है। साथ ही बच्चों के मन में अच्छे संस्कारों के सिंचन का प्रयास भी किया गया है।
*मेरे पापा सबसे अच्छे* कविता-संकलन में, मैंने अपनी ढ़ेर सारी सुन्दर-सुन्दर कविताओं में से बालोपयोगी, रोचक और मनभावन बाल-कविताओं को चुना है और ये ऐसी बाल-कविताएँ हैं जिन्हें बच्चे सहज में ही गुनगुना सकेंगे और उनका अनुकरण भी कर सकेंगे।
*एप्पल में गुण एक हजार* कविता में एप्पल का सेवन करने से होने वाले अनेकानेक लाभों का वर्णन किया गया है तो *केला खाओ, हैल्थ बनाओ* कविता में केला खाने के महत्व को बताया गया है। *फल खाओगे, बल पाओगे* में फलों के महत्व को बताया गया है या फिर *काजू किशमिश और मखाने, शक्ति-पुंज हैं जाने माने।* के माध्यम से बालकों को सूखे-मेवे आदि खाने के लिए प्रेरित किया गया है।
आधुनिक परिवेश में स्वास्थ्य की दृष्टि से, इन सभी बातों का ज्ञान बच्चों को होना अत्यन्त आवश्यक भी हैं।
*चलो बुहारें अपने मन को* कविता, मन से घृणा और द्वेष को दूरकर, प्रेम और भाई-चारे का सन्देश देती है तो *चलो करें जंगल में मंगल* बच्चों को प्रकृति के साथ दो पल बिताने और उसके साथ अपने मन की बातों को बतियाने की ललक पैदा करती है और उसके संरक्षण का सन्देश देती है।
  *बन सकते तुम अच्छे बच्चे* कविता में बच्चों के मन में अच्छे संस्कार-सिंचन का प्रयास है तो कहीं स्वच्छता और ध्यान-योग को जीवन में अपनाने की प्रेरणा है।
*मेरी गुड़िया छैल-छबीली*, *मेरा गुड्डा मस्त कलन्दर* जैसी कविताएँ बाल-सुलभ क्रीड़ाओ की अनुभूति करातीं हैं तो *आओ चन्दा मामा आओ* और *सूरज दादा कहाँ गए तुम* चाँद-सितारों के साथ आत्मीय सम्वादों से परिपूर्ण है। *मेरे जन्म दिवस पर* कविता बच्चों के मन में पुस्तक पढ़ने की ललक जगाती है। 
इस पुस्तक की हर कविता सभी वर्ग के पाठकों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। बालकों के कोमल बाल-मन में अच्छे संस्कारों का सिंचन कर उन्हें एक नई दिशा देगी।
ऐसा मेरा विश्वास है, अस्तु। 
-आनन्द विश्वास
सी-85, ईस्ट एण्ड एपार्टमेंटस्
न्यू अशोक नगर मैट्रो स्टेशन के पास
मयूर विहार फेज़-1 (एक्टेंशन)
नई दिल्ली- 110 096
मोः 09898529244, 7042859040
E-mail: anandvishvas@gmail.com

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Thursday, 31 December 2015

My Papa Is The Best

...Anand Vishvas

My Papa is the best,
Become child with me.

They become instant horse,
And sit me on his back.

Shaking leg says Hin-Hin,
Valid wandered gallop.

And then they jump,
Say Tap-Tap, Tap-Tap.

Tired then say horse is hungry ,
Asking  for Bread and Pakora.

Bring tea and Pakora,
Now horse Delete appetite.

My beloved daughter, Queen,
Bring water to the thirsty horse.

I quickly get water,
And feed them by my own.

How beautiful doll brought,
Gift has swarmed.

When I press doll's stomach,
She sings song and laughs.

They dangle me on his feet,
Sing song Zhu-Zhu, Ma-Mu.

Pose, pose, taking the strain,
When high and drop on the bad.

Papa then filtered Pick
Pick up and Drop me.

Fall molt pleasing me,
Dad playing with bearable.

I take food with him,
They tell story every day.

I'm rolling and tossing,
When I tired I fall sleep.
...Anand Vishvas


Thursday, 17 December 2015

किस नम्बर की कार तुम्हारी

किस नम्बर की कार तुम्हारी
...आनन्द विश्वास
चन्दा   मामा    हमें   बताओ,
किस नम्बर की कार तुम्हारी।
पन्द्रह-पन्द्रह  दिन  ना  आते,
कैसी   है  सरकार   तुम्हारी।

पन्द्रह  दिन तक इवन नम्बर,
पन्द्रह  दिन तक  नम्बर ऑड।
इवन-ऑड वहाँ  भी  चलता,
या  तुम  करते  रहते  फ्रॉड।

डीज़ल  से   क्या  चलते  तारे,
सीएनजी  किट नहीं वहाँ पर।
दूषित  है  वातास  वहाँ  क्या,
धूल-धुआँ    कैसा   है   ऊपर।

सूरज पर  क्या पावर-कट है,
पावर-हाउस हुआ क्या फेल।
लो-बोल्टेज  की धूप यहाँ  है,
राम   भरोसे   अपनी   रेल।

कौन-कौन से  दल  हैं  नभ में,
भ्रष्टाचार  वहाँ    पर   कैसा।
अच्छे  दिन  हैं कहो  वहाँ पर,
या फिर सब कुछ धरती जैसा।

कृष्ण-पक्ष  है,  शुक्ल-पक्ष  है,
पन्द्रह-पन्द्रह दिन का शासन।
क्या विपक्ष की  संख्या कम है,
ठग-बन्धन का चलता शासन।

हमने   तो  सोचा  था  पहले,
मामा  के   घर  हम   जाऐंगे।
वातावरण  वहाँ  जब  दूषित,
अब  हम  वहाँ  नहीं  आऐंगे।
...आनन्द विश्वास