Monday, 6 July 2020

"सजनवा के गाँव चले"


सूरज उगे या शाम ढले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव  चले।

सपनों  की रंगीन  दुनियाँ  लिए,
प्यासे उर में वसन्ती  तमन्ना लिए।
मेरे हँसते  अधर, मेरे  बढ़ते  कदम,
अश्रुओं की सजीली-सी लड़ियाँ लिए।

कोई हँसे या कोई जले,
मेरे  पाँव   सजनवा  के  गाँव  चले।

आज पहला मिलन है अनोखा मिलन,
धीर  धूलि  हुआ,  जाने  कैसी  लगन।
रात  होने    लगी,  साँस   खोने  लगी,
चाँद - तारे   चमकते,  बहकते  नयन।

कोई मिले या कोई छले,
मेरे  पाँव   सजनवा  के  गाँव  चले।

दो हृदय का बिरह बन गया अब रुदन,
हैं  बिलखते  हृदय  तो  बरसते  नयन।
आत्मा  तो  मिली  जा  प्रखर  तेज से,
है यहाँ  पर  बिरह तो वहाँ  पर मिलन।

श्रेय मिले या प्रेय मिले,
मेरे  पाँव  सजनवा  के  गाँव  चले।

दुलहन आत्मा  चल  पड़ी  देह  से,
दो नयन मिल गए  जा परम गेह से।
माँ  की ममता  लिए  देह  रोती रही,
मग भिगोती  रही, प्यार  के  मेह से।

ममता हँसे या आँसू झरे,
मेरे  पाँव  सजनवा  के  गाँव  चले।
        ***
           -आनन्द विश्वास

No comments:

Post a Comment