Friday, 10 July 2020

"मैंने जाने गीत विरह के"


मैंने  जाने  गीत  विरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है,
कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।
छल से छला गया है जीवन,
आजीवन का था समझौता।
लहरों  ने  पतवार  छीन ली,
नैया  जाती   खाती   गोता।
किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  विरह  के, मधुमासों  की  आस  नहीं  है।
मेरे   सीमित    वातायनन  में,
अनजाने   किया   बसेरा।
प्रेम-भाव  का  दिया जलाया,
आज बुझा, कर दिया अंधेरा।
कितने सागर बह-बह निकलें, आँखों को एहसास नहीं है,
मैंने  जाने   गीत  विरह  के, मधुमासों  की आस  नहीं है।
मरुथल में  बहतीं दो नदियाँ,
कब तक प्यासा उर सींचेंगीं।
सागर  से  मिलने  को आतुर,
दर-दर पर कब तक भटकेंगीं।
तूफानों से लड़-लड़ जी लूँ, इतनी तो अब साँस नहीं है,
मैंने  जाने   गीत विरह  के, मधुमासों  की आस नहीं है।
विश्वासों  की  लाश  लिये  मैं,
कब तक सपनों के  संग खेलूँ।
सोई - सोई   सी   प्रतिमा  को,
सत्य समझ कब तक मैं बहलूँ।
मिथ्या जग में सच हों सपने, मुझको यह एहसास नहीं है,
मैंने  जाने  गीत  विरह  के, मधुमासों  की आस  नहीं है।
-आनन्द विश्वास

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