Bahadur Beti
*बहादुर बेटी*
(बाल-उपन्यास)
कहानी
है
बहादुर बेटी
आरती
की
→ जिसने
पीएम के ड्रीमलाइनर विमान को आतंकवादियों के चंगुल से मुक्त कराया।
→ जिसने
तीन-तीन खूँख्वार आतंकवादियों को बेहोश कर सरकार के हवाले कर दिया।
→ जिसने
घाटी में से आतंकवादियों और उनके आतंकी अड्डे को तहस-नहस कर डाला।
→ जिसने
पुस्तक और पैन को घर-घर तक पहुँचाकर घाटी में विकास की नई गाथा लिख दी।
→ जिसने
घाटी के रैड ब्लड ज़ोन का विकास कर देशी और विदेशी इन्वैस्टर्स के लिए रैड
कॉर्पेटस् बिछवा दिए।
→ जिसकी
बदौलत एके-47 थामने वाले सशक्त युवा हाथों में आज ऐंड्रोंयड-वन आ गए।
→ जिसकी
बदौलत रायफल्स की ट्रिगर पर घूमने वाली सशक्त युवा-हाथों की अंगुलियाँ अब
कॉम्प्यूटर और लैपटॉप के की-बोर्ड के साथ खेलने लगीं।
→ जिसने
अपने साथियों के साथ मिलकर अनेक चैरिटी-शो करके स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब और
अनाथ बच्चों के लिए फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खोले।
→ जिसने
अपने स्कूल का उद्घाटन पीएम श्री से करवाया और जिससे प्रेरणा लेकर स्वयं पीएम श्री
ने भी हर स्टेट में इसी प्रकार के फ्री-रेज़ीडेन्शियल स्कूल खुलवाए।
→ जिसने
बेटी पढ़ाओ और देश बढ़ाओ के आन्दोलन को गतिशील बनाया। उसने कहा...
बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,
बेटी शिक्षित, पूरी
शिक्षा।
→ जिसने
बेटी के शिक्षा और सुरक्षा के अभियान को घर-घर तक पहुँचाकर सशक्त बनाया। उसने कहा...
हार
जाओ भले, हार मानो
नहीं।
तन
से हारो भले, मन से हारो नहीं।
→ तभी तो
प्रेस और मीडिया की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश की बहादुर बेटी आरती बोल रही थी
और पीएम का मन पिघल रहा था।
→ विशाल
देश के सशक्त पीएम की आँखों में पहली बार आँसू देखे गए। उन्हें रह-रह कर बस, यही
ख्याल आ रहा था कि देश के बच्चे जिस काम को करने का अपना मन बना सकते हैं और कुछ
करने का बीड़ा उठा सकते हैं तो हम इतनी बड़ी सत्ता और सामर्थ्य के होते हुए भी, उन
स्लम-एरिया में रहने वाले गरीब बच्चों के उत्थान के विषय में, क्या सोच भी नहीं
सकते।
→ और जबकि मैं
भी तो उन्हीं बच्चों में से एक बच्चा हूँ जिसने अपने संघर्ष-मय जीवन की शुरुआत ही,
स्लम-एरिया की उस छोटी-सी झोंपड़ी से की थी। वह भी तो कभी स्लम-एरिया में रहकर ही अपनी
गुजर-बसर किया करता था और लैम्प-पोस्ट के नीचे टाट के बोरे पर बैठकर गणित के सवाल
किया करता था।
→ कैसे भूल
सकता हूँ मैं अपनी जिन्दगी के वे गर्दिश के दिन, जब मैं खुद किसी सेठ की एक छोटी-सी
दुकान पर काम किया करता था।
→ गरीबी की
सौनी-गंध तो आज भी उनके मन-मस्तिष्क पर अटी पड़ी थी।
→ बाल-उपन्यास
की हर घटना अपने आप में रोचक बन पड़ी है जो पाठक-गण को चिन्तन, मनन और सोचने के
लिये विवश करेगी।
-आनन्द
विश्वास
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विशेषः- बाल-उपन्यास
उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ से प्रकाशित किया गया है और विक्रय के लिए उपलब्ध है। जिसकी
पृष्ठ संख्या-152 और मूल्य-150/- है।
उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ
142, शाक्य पुरी, कंकरखेड़ा
मेरठ कैन्ट-250 001
फोनः 0121-2632902,
09897713037
-आनन्द विश्वास
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद