Friday, 28 October 2016

*इस बार दिवाली सीमा पर*



इस बार दिवाली सीमा पर,
है खड़ा  मवाली  सीमा पर।
इसको  अब  सीधा करना है,
इसको अब  नहीं सुधरना है।
इनके  मुण्डों  को  काट-काट,
कचरे के संग फिर लगा आग।
गिन-गिन कर बदला लेना है,
हम  कूँच  करेंगे  सीमा  पर।
ये  पाक  नहीं,  ना पाकी  है,
चीनी, मिसरी-सा  साथी है।
दोनों की  नीयत  साफ नहीं,
अब करना इनको माफ नहीं।
इनकी  औकात   बताने  को,
हम, चलो  चलेंगे सीमा पर।
दो-चार  लकीरें   नक्शे  की,
बस  हमको  जरा बदलना है।
भूगोल  बदलना   है   हमको,
इतिहास स्वयं लिख जाना है।
आतातायी का  कर  विनाश,
फिर धूम-धड़ाका सीमा पर।
...आनन्द विश्वास 

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