इस बार दिवाली सीमा पर,
है खड़ा मवाली सीमा
पर।
इसको
अब सीधा करना है,
इसको
अब नहीं सुधरना है।
इनके
मुण्डों को काट-काट,
कचरे
के संग फिर लगा आग।
गिन-गिन कर बदला लेना है,
हम कूँच करेंगे
सीमा पर।
ये
पाक नहीं, ना
पाकी है,
चीनी,
मिसरी-सा साथी है।
दोनों
की नीयत साफ नहीं,
अब
करना इनको माफ नहीं।
इनकी औकात बताने
को,
हम, चलो चलेंगे सीमा पर।
दो-चार
लकीरें नक्शे की,
बस
हमको जरा बदलना है।
भूगोल
बदलना है हमको,
इतिहास
स्वयं लिख जाना है।
आतातायी का कर विनाश,
फिर धूम-धड़ाका सीमा पर।
...आनन्द
विश्वास