Friday 26 December 2014

*सूरज दादा कहाँ गए तुम*

*सूरज दादा कहाँ गए तुम*
...आनन्द विश्वास

सूरज  दादा  कहाँ   गए  तुम,
काह ईद  का  चाँद  भए तुम।
घना   अँधेरा,  काला - काला,
दिन निकला पर नहीं उजाला।
कोहरे   ने   कोहराम  मचाया,
पारा  गिर  कर  नीचे  आया।
काले  बादल   जिया   डराते,
हॉरर-शो  सा  दृश्य  दिखाते।
बर्षा  रानी   आँख   दिखाती,
झम झम झम पानी बरसाती।
काले – काले   बादल   आते,
उमढ़-घुमड़  कर शोर मचाते।
नन्हीं - नन्हीं  बूँद  कभी  तो,
कभी ज़ोर  की  बारिश लाते।
सर्द  हवाऐं,  शीत  लहर  है,
बे-मौसम  बरसात  कहर  है।
*टच मी नॉट* कहे अब पानी,
*बाहर ना जा* कहती  नानी।
कट - कट दाँत  बजाते बाजा,
मौसम  अपना  बैण्ड बजाता।
सड़क,  गली,  कूँचे,  चौबारे,
सब   सूने  हैं   ठंड  के  मारे।
फुट - पाथी,   बेघर,  बेचारे,
इन सबके  तो  तुम्हीं  सहारे।
अब तो सुन लो, सूरज दादा,
कल  आने  का  दे दो  वादा।
...आनन्द विश्वास

2 comments:

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