Thursday, 4 July 2019

मेरा बाल-उपन्यास "देवम" अब मणीपुरी में भी..

मित्रो,
मेरा बाल-उपन्यास देवम, अब मणीपुरी में भी उपलब्ध है। देवम बाल उपन्यास को के.टी. पब्लिकेशन, इम्फाल (मणीपुर) द्वारा प्रकाशित किया गया है और जिसका अनुवाद श्री खाड़ेम्बम तोमचौ जी के द्वारा किया गया है। हिन्दी बाल-उपन्यास को मणीपुरी भाषा में अनुवाद कर मणीपुरी भाषा-भाषी बच्चों और साहित्य-प्रेमी पाठकों तक पहुँचाने का, श्री खाड़ेम्बम तोमचौ जी का यह प्रयास निश्चय ही सराहनीय कार्य है। पुस्तक विमोचन के कुछ चित्रों को साझा कर रहा हूँ।
धन्यवाद।
-आनन्द विश्वास

Saturday, 9 February 2019

"ऐसे जग का सृजन करो, माँ"

ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।
अविरल  वहे  प्रेम  की सरिता,
मानव - मानव   में  प्यार  हो।
फूलें-फलें   फूल   बगिया  के,
काँटों   का   हृदय  उदार  हो।
जिस मग में कन्टक हों पग-पग,
ऐसे  मग  का  हरण  करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।
पर्वत  सागर  में    समता  हो,
भेद-भाव  का  नाम  नहीं  हो।
दौलत  के   पापी   हाथों   में,
बिकता  ना  ईमान  कहीं  हो।
लंका  में   सीता  को  भय  हो,
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन करो, माँ।
परहित  का  आदर्श  जहाँ हो,
घृणा-द्वेश-अभिमान  नहीं हो।
मन-वचन-कर्म का शासन हो,
सत्य जहाँ  बदनाम  नहीं हो।
जन-जन  में   फैले  खुशहाली,
घृणा अहम् का दमन करो माँ।
ऐसे  जग का सृजन  करो, माँ।
धन  में   विद्या  अग्रगण्य  हो,
सौम्य    मनुज    श्रृंगार   हो।
सरस्वती, दो  तेज किरण-सा,
हर   उपवन   उजियार   हो।
शीतल,स्वच्छ,समीर सुरभि हो,
उस उपवन का वपन करो, माँ।
ऐसे  जग का  सृजन  करो, माँ।
-आनन्द विश्वास

Tuesday, 1 January 2019

"पीछे मुड़कर कभी न देखो"

पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना।
उज्ज्वल कल है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संघर्ष आज तुमको करना है,
महनत में  तुमको  खपना है।
दिन और रात  तुम्हारे अपने,
कठिन  परिश्रम  में तपना है।
फौलादी आशाऐं लेकर, तुम  लक्ष्य प्राप्त करते जाना।
पीछे मुड़कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है बड़ा कीमती,
गया समय वापस ना आता।
रहते  समय  न जागे तुम तो,
जीवन  भर  रोना  रह जाता।
सत्यवचन सबको खलता है,मुश्किल है सच को सुन पाना।
पीछे  मुड़कर  कभी न  देखो, आगे  ही तुम  बढ़ते जाना।
बीहड़  बीयावान  डगर  पर,
कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।
इस  छलिया  माया  नगरी में,
अपने  ही  प्रतिकूल  मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों  से मुश्किल  बच पाना।
पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे  ही  तुम  बढ़ते जाना।
झंझावाती  प्रबल  पवन  हो,
तुमको  कहीं  नहीं रुकना है।
बाधाऐं  हों   सिर  पर हावी,
फिर भी तुम्हें नहीं झुकना है।
मन में  दृढ़  विश्वास  लिए, संकल्प  सिद्ध  करते जाना।
पीछे  मुड़कर कभी न  देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना।
नदियाँ  कब   पीछे  मुड़तीं हैं,
कल-कल करतीं आगे बढ़तीं।
समय-चक्र  आगे  ही  बढ़ता,
घड़ी कहाँ कब उल्टी चलतीं।
पल-पल बदल रहा है सब कुछ,संग समय के चलते जाना। 
पीछे  मुड़कर  कभी न  देखो, आगे  ही  तुम  बढ़ते जाना।
...आनन्द विश्वास