Sunday, 25 January 2015

*मेरे देश की माटी सोना*

*मेरे देश की माटी सोना*
...आनन्द विश्वास 

मेरे  देश  की  माटी  सोना, सोने का  कोई काम ना,
जागो   भैया   भारतवासीमेरी   है   ये   कामना।
दिन तो  दिन है  रातों को  भी थोड़ा-थोड़ा जागना,
माता  के  आँचल  पर  भैयाआने  पावे  आँच  ना।

अमर धरा के  वीर सपूतो, भारत माँ  की  शान तुम,
माता  के  नयनों  के  तारे  सपनों  के  अरमान  तुम।
तुम  हो  वीर शिवा  के वंशज  आजादी  के  गान हो,
पौरुष की  हो खान  अरे तुम हनुमत से अनजान हो।

तुमको  है  आशीष  राम  का, रावण  पास    आये,
अमर  प्रेम  हो उर  में इतना, भागे  भय से  वासना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना, सोने का  कोई काम ना।

आज देश का  वैभव रोता, मरु के नयनों  में पानी है,
मानवता  रोती है दर-दर, उसकी भी यही कहानी है।
उठ कर गले लगा लो तुम, विश्वास स्वयं ही सम्हलेगा,
तुम बदलो  भूगोल जरा, इतिहास  स्वयं ही बदलेगा।

आड़ी-तिरछी   मेंट  लकीरें,   नक्शा   साफ   बनाओ,
एक  देश हो, एक  वेश हो, धरती  कभी    बाँटना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना,  सोने का  कोई काम ना।

गैरों का  कंचन  माटी  है, मेरे  देश  की  माटी सोना,
माटी  मिल   जाती  माटी  मेंरह  जाता  है  रोना।
माटी की खातिर मर मिटना माँगों को सूनी कर देना,
आँसू  पी-पी  सीखा  हमनेबीज  शान्ति  के  बोना।

कौन  रहा  धरती  पर  भैया, किस  के  साथ  गई  है,
दो  पल  का  है रैन बसेरा, फिर  हम सबको भागना।
मेरे  देश  की  माटी  सोना,  सोने का  कोई काम ना।

हम धरती  के लाल  और यह हम सब  का आवास है,
हम सब की हरियाली घरती, हम सब का आकाश है।
क्या हिन्दू, क्या  रूसी चीनी, क्या  इंग्लिश अफगान,
एक  खून  है सब का  भैया, एक  सभी  की  साँस  है।

उर को  बना  विशाल, प्रेम  का  पावन  दीप जलाओ,
सीमाओं  को बना  असीमितअन्तःकरण  सँवारना।
मेरे  देश  की माटी  सोना, सोने  का  कोई  काम ना।
जागो   भैया    भारतवासीमेरी   है   ये   कामना।

...आनन्द विश्वास


Friday, 23 January 2015

*आया मधुऋतु का त्योहार*

*आया मधुऋतु का त्योहार*

खेत-खेत   में   सरसों  झूमेसर-सर  वहे  वयार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
धानी  रंग  से  रंगी धरा,
परिधान   वसन्ती  ओढ़े।
हर्षित  मन  ले लजवन्ती,
मुस्कान   वसन्ती   छोड़े।
चारों  ओर  वसन्ती  आभाहर्षित  हिया  हमार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
सूने-सूने  पतझड़  को  भी,
आज वसन्ती प्यार मिला।
प्यासे-प्यासे  से नयनों को,
जीवन का  आधार मिला।
मस्त  गगन हैमस्त  पवन है, मस्ती  का अम्बार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
ऐसा   लगे  वसन्ती  रंग  से,
धरा की हल्दी आज चढ़ी हो।
ऋतुराज ब्याहने  आ पहुँचा,
जाने की जल्दी आज पड़ी हो।
और कोकिला  कूँक-कूँक  कर, गाये मंगल ज्योनार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
पीली चूनर ओढ़ धरा अब,
कर  सोलह  श्रृंगार  चली।
गाँव-गाँव  में  गोरी  नाचें,
बाग-बाग  में  कली-कली।
या फिर  नाचें  शेषनाग  पर, नटवर  कृष्ण  मुरार,
मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।
                         ....आनन्द विश्वास