Monday, 10 March 2014

*पीछे मुड़ कर कभी न देखो*

*पीछे मुड़ कर कभी न देखो*
(यह कविता मेरे काव्य-संकलन
*मिटने वाली रात नहीं*
से ली गई है।)
...आनन्द विश्वास

*पीछे मुड़ कर कभी न देखो*

पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम  बढ़ते जाना,
उज्वल ‘कल’ है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।
संधर्ष आज  तुमको करना है,
मेहनत में  तुमको खपना है।
दिन और रात  तुम्हारे अपने,
कठिन  परिश्रम   में तपना है।
फौलादी  आशाऐं  लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्ति करते जाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।
इक-इक पल है  बहुत कीमती,
गया समय  वापस  ना आता।
रहते  समय    जागे तुम तो,
जीवन  भर  रोना रह  जाता।
सत्यवचन सबको खलता है मुश्किल है सच को सुन पाना
पीछे  मुड़ कर कभी  न देखो, आगे  ही तुम  बढ़ते जाना।
बीहड़  बीयावान   डगर  पर,
कदम-कदम  पर  शूल मिलेंगे।
इस   छलिया  माया नगरी में,
अपने   ही   प्रतिकूल   मिलेंगे।
गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे  ही तुम बढ़ते जाना।
कैसे  ये    होते    हैं   अपने,
जो सपनों को तोड़ा करते हैं।
मुश्किल में हों आप अगर तो,
झटपट  मुँह  मोड़ा  करते  हैं।
एक ईश जो साथ तुम्हारे, उसके तुम हो कर रह जाना,
पीछे  मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही  तुम बढ़ते जाना।
...आनन्द विश्वास

Saturday, 8 March 2014

*अबोध बालक*

देवम का घर स्कूल से थोड़ी ही दूरी पर है। वह अक्सर अपने साथियों के साथ पैदल या कभी-कभी साइकिल से स्कूल आया-जाया करता है। और जब कभी पापा के पास समय होता तो वे स्कूटर या कार से उसे स्कूल छोड़ देते और आते समय वह पैदल ही अपने साथियों के साथ वापस आ जाता।
शाम को देवम स्कूल के मैदान में फुटबॉल खेलने जाता, वह स्कूल की टीम में भी खेलता। शाम को देवम के स्कूल में पी.टी. सर अपनी देख-रेख में सभी खिलाड़ियों को खिलाते और प्रशिक्षण भी देते। देवम का यह नित्य का नियम है शाम हुई नही कि देवम स्कूल के मैदान पर।
देवम हॉकी, फुटबॉल तथा क्रिकेट बहुत अच्छा खेलता, स्कूल के सभी शिक्षक, छात्र उसका सम्मान भी करते। और जब कभी भी देवम की टीम जीतती तो उसमें देवम का योगदान अवश्य होता। देवम अपनी स्कूल की फुटबॉल टीम का कैप्टिन भी है।
आज स्कूल में फुटबॉल के टूर्नामेंट का फाइनल मैच सौरभ विद्यालय से है। स्कूल में काफी दर्शक और स्कूल के छात्र भी आये हुये है।
शहर के नेशनल डिग्री कॉलेज के प्राचार्य डॉ. राजेश गौड़ अतिथि-विशेष के रूप में आये थे। जो यूनिवर्सिटी स्पोर्टस् कमेटी के सदस्य भी हैं और किसी समय वे अच्छे खिलाड़ी भी रहे थे।
देवम के स्कूल की टीम ने सौरभ विद्यालय की टीम को दो गोल से हरा कर शील्ड जीत ली। जिसमें एक गोल देवम ने और दूसरा गोल उसके साथी राहुल ने किया।
सभी दर्शक देवम और राहुल के खेल की बहुत-बहुत तारीफ़ कर रहे थे। जिनके पासिंग कम्बीनेशन से ही गाँधी विद्यालय जीत सका। अतिथि विशेष को भी देवम और राहुल का खेल बहुत पसंद आया। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने देवम और राहुल के खेल की प्रशंसा भी की थी।
जीतने वाले तथा हारने वाले दोनों टीम के सभी खिलाड़ियों को अतिथि-विशेष के द्वारा पुरस्कार का वितरण किया गया और शील्ड गाँधी विद्यालय के कैप्टिन देवम और साथी खिलाड़ियों को प्रदान की गई। शाम का समय हो चुका था। खेल खत्म होने के बाद देवम और उसके साथी पैदल ही अपने घर की ओर आ रहे थे।
इन्हीं के साथ कुछ बच्चे भी खेलते-खेलते मस्ती में चल रहे थे। शायद वे कुछ खेल के मूड में रहे होंगे, वे पत्थर उठा कर थोड़ी दूर पड़े, दूसरे पत्थर को मार कर अपना निशाना लगा रहे थे। और इस प्रकार शर्त लगा कर वे कभी जीतते तो कभी हारते, और अपने घर की ओर बढते जा रहे थे।
उसमें से एक ने कहा- अच्छा सामने उस पत्थर पर निशाना लगा। और फिर दूसरे ने पत्थर हाथ में लेकर निशाना मारा। पत्थर ठीक लक्ष्य पर लगा। अच्छा, चल तेरे सात पोइंट हो गये।
अच्छा, चल अब तू उस विजली के खम्भे पर निशाना लगा। और इस बार फिर निशाना सही बैठा, इस पर दूसरे का एक पोइंट और बढ़ गया। और अब इस बार लक्ष्य था सड़क के दूसरी ओर खड़े टेलीफोन के खम्भे का।
दोनों के हाथ में पत्थर थे और अर्जुन की भाँति लक्ष्य की ओर निशाना। उन्होने सड़क के दूसरी ओर खड़े टेलीफोन के खम्भे की ओर पत्थर फेंके।
पत्थर हाथों से निकल चुके थे, तभी तेजी से दौड़ती हुई जीप सड़क पर गुजरी और पत्थर जीप-चालक के सिर पर जा लगा।
एक जोरदार चीख के साथ ही ड्राइवर जीप का सन्तुलन खो बैठा। और असंतुलित जीप, साइकिल को रौंदती हुई, स्कूटर को टक्कर मार कर सड़क के किनारे खड़ी बस से जा टकराई।
जीप में बैठे हुये पुलिस के दारोगा तथा तीन सिपाहियों को काफी चोट लगी। बड़ी मुश्किल से जीप में फँसे लोगों बाहर निकाला गया। काफी लोग लहू-लुहान हो गये थे।
साइकिल पर स्कूल का ही छात्र राहुल था। जो स्कूल से मैच खेल कर घर वापस जा रहा था। उसकी साइकिल के ऊपर से जीप का अगला पहिया निकला गया था और राहुल को भी बहुत चोट आई। वह बेहोश हो  गया था और चल भी नहीं सकता था।
राहुल, गाँधी विद्यालय का छात्र और देवम का परम मित्र भी। देवम और राहुल दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे। राहुल स्कूल टीम में मैच खेल कर वापस घर जा रहा था। एक गोल उसने भी किया था।
अपने साथी राहुल को घायल अवस्था में देख कर देवम एक पल के लिये तो किं कर्तव्यम् विमूढ ही हो गया और दूसरे क्षण ही उसने त्वरित निर्णय लेते हुये अपने दो साथी विजय और आकाश से कहा कि तुम तुरन्त इसकी सूचना स्कूल में जाकर आरती मैडम को दो और मैं राहुल को ले कर अस्पताल पहुँच रहा हूँ।
इधर दो तीन लोगों की सहायता से देवम ने राहुल को रिक्शे में बैठा कर अस्पताल ले जाने की व्यवस्था की। कुछ लोग कहने लगे कि पहले पुलिस केस करना पड़ेगा फिर अस्पताल ले जाना सम्भव होगा।
पर देवम ने इन लोगों की एक न सुनी और राहुल को अस्पताल पहुँचा कर तुरन्त ही इलाज की व्यवस्था करवाई। अस्पताल के डॉक्टर देवम के पापा के परम मित्र थे अतः बहुत कुछ समस्या अपने आप ही हल हो गई।
और जब देवम ने डॉक्टर अंकल को बताया कि राहुल उसका परम मित्र है तो फिर इलाज की पूरी व्यवस्था डॉक्टर अंकल ने अपनी देख-रेख में ही की।
राहुल की अस्पताल में व्यवस्था कर देवम ने राहुल के घर जाकर सूचना दी और राहुल की माँ को अपने साथ लेकर वापस अस्पताल आ गया। राहुल की माँ का रोते-रोते बुरा हाल हो गया था। पर होनी को कौन टाल सकता है ? आदमी इसके आगे विवश हो जाता है।
उधर घटना-स्थल पर देखते ही देखते हजारों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गई। सारे शहर में हर जगह यही चर्चा थी कि गांधी विद्यालय के छात्र का जीप से एक्सीडेंट हो गया। जो सुनता, घटना-स्थल की ओर दौड़ पड़ता।
इसी अंतराल में पत्थर फेंकने वाले बच्चों का तो पता नहीं, किधर भाग गये। उन्हें किसी ने नहीं देखा और आम पब्लिक तो यह ही समझ रही थी कि पुलिस वाला जीप ड्राइवर गाड़ी का सन्तुलन खो बैठा जिसकी वजह से ऐक्सीडेन्ट हो गया। इसी कारण से भीड़ में पुलिस के प्रति क्रोध और आक्रोश व्याप्त था। सभी लोग पुलिस की आलोचना ही कर रहे थे।
पुलिस स्कूल के दो छात्र आलोक और अजय, जो कि आकाश के आगे-आगे चल रहे थे, को पकड़ कर थाने ले गई है। पुलिस का कहना था कि इन लड़कों ने ही जीप पर पत्थर फेंके थे जिस कारण दुर्घटना हुई।
जबकि पत्थर के विषय में इन्हें कुछ भी जानकारी नहीं थी। वे तो मैच के बारे में बातचीत करते हुऐ फुटपाथ पर चल कर अपने घर की ओर आ रहे थे।
उधर स्कूल में आरती मैडम को आकाश और विजय ने घटना के विषय में बताया तो वे पी.टी. सर और उन छात्रों को साथ ले कर घटना-स्थल पर पहुँची।
घटना स्थल पर पता चला कि पुलिस स्कूल के दो छात्र आलोक और अजय को पकड़ कर थाने ले गई है और उन पर आरोप था कि इन छात्रों ने पत्थर फेंक कर ड्राइवर को घायल कर दिया, जिस कारण दुर्घटना हुई।  यह खबर हवा की तरह पूरे शहर में फैल गई।
 तुरन्त ही प्रिंसीपल आरती मैडम, पी.टी.सर, विजय और आकाश थाने पहुँचे और उनके पीछे-पीछे था, अपार जन-समुदाय।
सभी लोगों में पुलिस के इस बेहूदे आचरण के प्रति आक्रोश ही नहीं प्रतिशोध भी था। वे पुलिस विरोधी नारे भी लगा रहे थे।
प्रिंसीपल आरती मैडम ने थानेदार को समझाया और आश्वासन दिया कि ये बच्चे इस तरह का काम कभी भी नहीं कर सकते।
कोई और कारण रहा होगा, इन बच्चों को घटना के विषय में कोई भी जानकारी नहीं है। ये दोनों छात्र हमारे स्कूल के अनुशासित और अच्छे छात्र हैं।
थाने पर बढ़ती भीड़ और परिस्थिति को अपने विपरीत होते देख थानेदार ने आलोक और अजय को छोड़ देना ही उचित समझा।
आलोक और अजय को थाने से छुड़ा कर प्रिंसीपल आरती मैडम, पी.टी. सर और सभी छात्र तुरन्त अस्पताल पहुँचे। और साथ ही इस घटना की पूरी सूचना उन्होंने स्कूल संचालक श्री रामदयाल जी को दी और उनसे तुरंत अस्पताल पहुँचने का आग्रह किया।
जीप के ड्राइवर के खिलाफ भिन्न-भिन्न धाराओं के  अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया था। ड्राइवर को पुलिस ने अपनी कस्टडी में ले लिया था। पंचनामा हो गया था। कानून है, कानून तो अपना काम करेगा ही।
राहुल की माँ और उसके परिवार के लोग अस्पताल पहुँच चुके थे। राहुल की माँ का तो रोते-रोते बुरा हाल था। आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। प्रिंसीपल आरती मैडम ने राहुल की माँ को धैर्य बँधाया।
रामदयाल जी ने अस्पताल के अधिकारियों के साथ मिल कर शीघ्र ही अच्छे से अच्छे इलाज की व्यवस्था के लिये कहा तो डॉ. अविनाश ने कहा कि देवम ने यहाँ आ कर पहले ही से सब कुछ बता दिया है आप बिल्कुल भी चिन्ता न करें, राहुल का उपचार सही दिशा में चल रहा है। रामदयाल जी देवम के किये गये कार्यों से बड़े प्रसन्न हुये।
उधर घटना-स्थल पर बे-काबू हुई भीड़ को जब पता चला कि पुलिस स्कूल के दो छात्रों को पकड़ कर ले गई है तो भीड़ ने पुलिस की जीप को जला डाला और पुलिस के दमन विरोधी नारे लगाते हुये थाने की ओर चल पड़े।
भीड़ के केवल हाथ होते हैं और वे भी केवल विध्वंस करने वाले हाथ। वो कहाँ क्या कर बैठे किसी को पता नहीं होता। जगह-जगह उत्पात आगज़नी करते-करते भीड़ थाने पहुँच कर पत्थर मारी करने लगी। ऐसे में कुछ अवांछनीय तत्व भी इस भीड़ में शामिल हो गये।
लोगों ने थाने में घुस कर तोड़-फोड़ भी की। पुलिस के दमन कारी कृत्य के विरोध में जगह-जगह पर आगजनी की घटना होने लगी।
सी.आर.पी. और एस.आर.पी. की टुकड़ियाँ  बुलानी पड़ी। इतना ही नहीं कई जगह तो कर्फ्यू और धारा 144 भी लगानी पड़ी। तब कहीं जा कर शहर की व्यवस्था को कन्ट्रोल किया जा सका।
स्कूल के छात्र बहुत दुखी थे उनके प्रिय साथी राहुल का इलाज अस्पताल में हो रहा था। कोई दिन ऐसा नहीं जाता था, जिस दिन स्कूल के दस बारह साथी राहुल से मिलने अस्पताल में न आते हों।
देवम तो रोज़ ही राहुल से मिलने जाता और किसी चीज की जरूरत होती तो उसे दे कर भी आता था। स्कूल के टीचर्स और प्रिन्सीपल भी समय निकाल कर जरूर आते।
लगभग चार पाँच दिन के बाद आठवीं कक्षा के दो छात्र रोहन और सोहन फूल का एक गुच्छा ले कर अस्पताल राहुल से मिलने पहुँचे। उनकी आँखों में आँसू थे और मन में ग्लानि के भाव।
उन्होंने रो-रो कर राहुल को बताया कि उन्हीं के कारण उस की यह दशा हुई है। असल में हम दोनों का पत्थर ही ड्राइवर के लग गया था जिस कारण जीप का एक्सीडेंट हो गया था।
राहुल भैया, आप हमें माफ कर दो, वैसे तो हम आपसे माफी के लायक भी नहीं हैं, हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई। भविष्य में हम कभी भी ऐसा खेल नहीं खेलेंगे जिसके कारण किसी को कोई कष्ट हो। हमारी वजह से ही आपको बहुत कष्टों का सामना करना पड़ा।
राहुल ने दोनों साथियों को गले लगा लिया और माफ कर दिया। रोहन और सोहन के सिर से जैसे एक बहुत बड़ा  बोझ उतर गया था। लेकिन वे आँसू, आत्मग्लानि और अफसोस के बोझ से दबे जा रहे थे।
अब उन्हें एहसास हो रहा था कि एक छोटी सी नादानी, नासमझी कितना बड़ा अहित कर सकती है, कितने लोगों को कष्ट पहुँचा सकती है।
यहीं तक नही, जब पुलिस वालों को सत्य का पता चला तो उन्होंने भी देवम और राहुल से अपनी गलती के प्रति दुख और अफसोस व्यक्त किया।
   काश !  समय रहते हम अपने बच्चों को कुछ अच्छे संस्कार और अच्छी बातें सिखा पाते ! अच्छे संस्कार देना आखिर, हमारा ही तो कर्तव्य है।
*** 
(यह कहानी मेरे बाल-उपन्यास "देवम बाल-उपन्यास" से ली गई है।)
-आनन्द विश्वास