Monday, 30 November 2015

"चलो बुहारें अपने मन को"

चलो, बुहारें  अपने मन को,
और सँवारें निज जीवन को।
    चलो,स्वच्छता को अपना लें,
    मन को निर्मल स्वच्छ बन लें।
देखो,  कितना गन्दा  मन  है,
कितना कचरा और घुटन है।
    मन  कचरे से अटा  पड़ा है,
    बदबू  वाला  और  सड़ा  है।
घृणा  द्वेष  अम्बार  यहाँ है,
कचरा  फैला  यहाँ  वहाँ है।
    मन की सारी  गलियाँ देखो,
    गंध  मारती  नलियाँ  देखो।
घायल  मन  की  आहें देखो,
कुछ  बनने  की  चाहें  देखो।
    राग  द्वेष  के  बीहड़  जंगल,
    जातिवाद के अनगिन दंगल।
फन  फैलाए  काले  विषधर,
सृष्टि निगल जाने  को तत्पर।
    मेरे   मन   में,  तेरे   मन  में,
    सारे जग के हर इक मन में।
शब्द-वाण  से आहत  मन में,
कहीं  बिलखते  बेवश मन में।
    ढाई   आखर   को   भरना  है,
    काम कठिन है पर  करना है।
...आनन्द विश्वास

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