Friday, 25 March 2016

"अगर सीखना कुछ चाहो तो"

 
अगर  सीखना  कुछ  चाहो तो,
हर  चीज   तुम्हें  शिक्षा  देगी।
शर्त यही  है  कुछ   पाने  की,
जब   मन  में   इच्छा  होगी।

नदियाँ कहतीं अविरल गति से,
पल-पल   तुम   बहते   जाओ।
आहत    होकर   चट्टानों    से,
गीत     मधुर     गाते   जाओ।

रुकना   नहीं  सदा  बहना  है,
जब  तक   मंजिल  ना  पाओ।
सागर  से  मिलने  को आतुर,
प्रति पल  आगे  बढ़ते  जाओ।

संघर्षों   में   जमकर   जी  लो,
मेहनत का मघुरस तुम पी लो।
जीवन   फिर   वासन्ती  होगा,
विषपायी  हो विष भी पी लो।

अवगुण  औरों  के   मत  देखो,
सद्गुण     सबके    अपनाओ।
कर्म, ज्ञान  औ भक्ति जगाकर,
अवगुण  अपने   दूर  भगाओ।

सूरज  खुद   पहले  तपता  है,
फिर देता  सबको  उजियारा।
पाँच तत्व के शक्ति-पुंज तुम,
है बोलो क्या कर्तव्य तुम्हारा।

सोने  से  तुम   तपना  सीखो,
संघर्षों   से    मत   घबराओ।
पुस्तक  कहतीं  ज्ञान-पुंज मैं,
जितना  चाहो   लेते   जाओ।

सूर्य-मुखी  सूरज   मुख  जैसे,
ऐसे  ही तुम  गुरु-मुख होना।
सर्वप्रथम  गुरु  माँ   होती है,
उनको  अपना शीश नवाना।

गति-मय चरण न रुकने पाएं,
मंजिल  अपने  आप  मिलेगी।
आज नहीं  तो  कल फूलों की,
बगिया  अपने  आप खिलेगी।
(यह कविता मेरे काव्य-संकलन 
*मिटने वाली रात नहीं* 
से ली गई है।)
-आनन्द विश्वास 
    

Wednesday, 9 March 2016

कुछ हाइकू

कुछ हाइकू
...आनन्द विश्वास
1.
मन की बात
सोचो, समझो और
मनन करो।
2.
देश बढ़ेगा
अपने दम पर
आगे ही आगे।
3.
अपना घर
तन-मन-धन से
स्वच्छ बनाएं।
4.
विद्या मन्दिर
नारों का अखाड़ा है
ये नज़ारा है।
5.
सब के सब
एक को हटाने में
एक मत हैं।
6.
पहरेदार
हटे, तो काम बने
हम सब का।
7.
नहीं सुहाते
दोनों घर हमको
बिन कुर्सी के।
***
...आनन्द विश्वास

Wednesday, 2 March 2016

मंकी और डंकी

मंकी और डंकी
...आनन्द विश्वास
डंकी  के  ऊपर  चढ़  बैठा,
जम्प लगाकर मंकी, लाल।
ढेंचूँ - ढेंचूँ    करता   डंकी,
उसका  हाल  हुआ बेहाल।
पूँछ पकड़ता कभी खींचता,
कभी पकड़कर खींचे कान।
कैसी अज़ब  मुसीबत आई,
डंकी   हुआ   बहुत  हैरान।
बड़े  जोर  से  डंकी  बोला,
ढेंचूँ  -  ढेंचूँ ,  ढेंचूँ  -  ढेंचूँ।
खों - खों  करके  मंकी पूछे,
किसको खेंचूँ, कितना खेंचूँ।
डंकी जी   ने  सोची  युक्ति,
लोट  लगाकर जड़ी दुलत्ती,
खीं-खीं  करता मंकी भागा,
टूट  गई   उसकी   बत्तीसी।