Sunday, 4 October 2015

लौट जाओ...

लौट जाओ...
...आनन्द विश्वास
तम,
तुम्हारा वास्ता क्या,
इस नगर से।
छोड़ दो यह रास्ता,
अब दूर जाओ,
इस डगर से।
ये नगर है सूर्य-वंशी,
राम का है, कर्ण का, हनुमान का है।
सत्य का है, ज्ञान का, विज्ञान का है।
हम उजाले के उपासक,
उजाले हम को भाये हैं।
तुम्हारे छल कपट हमको,
कभी ना रास आये हैं।
जागरण का गीत,
सूरज ने सुनाया है।
करेंगे दूर हम तम को,
यही अब मन बनाया है।
भोर की पहली किरण का,
आगमन होगा सबेरे।
मन में उजाला हो गया है,
दूर होंगे अब अँधेरे।
जग जगा है, चेत जाओ,
लौट जाओ गाँव अपने।
अब न फैलाओ,
यहाँ पर पाँव अपने।
सौगंध है तुमको,
तुम्हारी कालिमा की।
प्रियतमा की,
तम तुम्हारी लालिमा की।
लौट जाओ, लौट जाओ।
अब न आना, भूल कर भी इस नगर में।
लौट जाओ, लौट जाओ, लौट जाओ।
... आनन्द विश्वास

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